Tuesday, January 1, 2013


  • डरना हमने सीखा नहीं
    मर जायेंगे मिट जायेंगे
    झुकना हमने सीखा नहीं
    आओ सब मिल ये कसम
    खाएं
    एक खुशहाल भारत का
    सृजन करे
    दूसरों के दुखों को हरें
    • Thursday
    • 1
      जिन्दगी तुम्हे जीना चाहती थी मैं
      क्या करूं मौत ने वक़्त ही नहीं दिया
      जिन्दगी में आये थे तुम मेरी खुद बनके
      अब जा रहे हो छोड़ कर दुश्मन बनके
      तन्हा रही जिन्दगी तुम्हारे होते हुए
      अब तुम नहीं फिर भी तन्हा हूँ मैं
      ज़मीन पर रहने दीजिये मुझे
      आस्मां छूने की औकात नहीं
      मिटटी से बनी हूँ मैं आखिर
      मिटटी में ही मिल जाऊं

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