Friday, January 27, 2012

आज तुम को पा के, खुदा को पा लिया

खुद को हार के
तुम को जीत लिया
तुम को जीत के
खुद को पा लिया
भावनाओं के भंवर में
डूबती तैरती रही
प्यार की तलाश में
एक मरीचिका के
पीछे
भटकती रही
आज तुम को पा के
खुदा को पा लिया
आज खुदा को पा के
सच्चा प्यार पा लिया 

7 comments:

  1. बेहतरीन अंदाज़..

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  2. बहुत सुन्दर,सार्थक प्रस्तुति।

    ऋतुराज वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. बहुत खूब ... दिल के भावों को जुबां दे दी ... लाजवाब ...

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  4. शायद ही है मोहब्बत। बहुत प्रेमपुर्ण कविता।

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  5. शायद यही है मोहब्बत। बहुत प्रेमपुर्ण कविता।

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  6. प्रेम की मरीचिका का यथार्थ चित्रण......भावनाओं से ओत-प्रोत कविता....

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