Wednesday, February 29, 2012

तुम में ही सब मेरे जवाब नज़र आते हैं

बदले बदले से अंदाज़ नज़र आते हैं
आसमान में महताब नज़र आते हैं

कैसे कह दूँ दिल का हाले बयाँ जानम
गुलिस्ताँ के सूखे गुलाब नज़र आते हैं

इतने बढ़ गए मेरे दिल के स्याह अंधेरे
जलते चिराग भी बे-नूर नज़र आते हैं

इतने उठाये सवालात बे-रहम दुनिया ने 
तुम में ही सब मेरे जवाब नज़र आते हैं

बयान करूँ क्या मैं राज-ए-जिंदगी "ज्योति"
अपनी किताब के पन्ने खुले नज़र आते हैं

2 comments:

  1. वाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......

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