Friday, April 22, 2011

अंजाम

नदिया किनारे
बैठा एक शख्स
उदास
गहरी चिंता में
डूबा हुआ
उठाता पत्थर
फेंकता पानी में
एक गहरे द्वन्द
में
फंसा हुआ
बडबडाता जा रहा
एक झटके से उठा
झट से पानी में
कूद पड़ा
पानी बहुत उपर
उछला
कुछ क्षण
बाद
शांत स्थिर
कोई हलचल नहीं
ये क्या हुआ ?
उसने ये क्या किया
खुद को समाप्त कर लिया
क्यूँ ?
इतना उचाट हो चूका था
वो इस दुनिया से
इतना ऊब चूका था
अपनी जिन्दगी से
आत्महत्या करके
वो मुक्त हो गया
इस जिन्दगी के
तमाम दुखों ,झमेलों से
क्या सच में ऐसा हुआ ?
जो पीछे रह गए
उनका क्या हुआ
वो कैसे रह पायेंगे ?
कैसे सह पायेंगे ?
इतना बड़ा दुःख
अब क्या वो भी
मर जाएँ
उसके साथ
खुद को समाप्त करलें ?
क्या होगा उन बूढ़े माँ बाप का
छोटे छोटे बिलखते बच्चों का
सूनी पड़ चुकी उस मांग का
अब सिंदूर भरने वाला जो नहीं रहा
क्यूँ नहीं सोचा उस ने इन सब के
दुखों का
मर के वो कौन सा सुख दे गया
और अपनी करनी का
फल अपनों को
दे गया 

4 comments:

  1. आदरणीय भावनाएं जी..
    नमस्कार जी
    भावुक...लाजवाब...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
    दर्द भरे जज़्बात में डूबी सी.....

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  2. पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

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  3. सच आत्महत्या करने वाला ऐसा कुछ नही सोचता अगर सोचे तो करे ही नही।

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