Monday, April 11, 2011

बेचारी च:च:च:च: बहुत नेक थी.. च:च:च:च:

क्षमा करती रही
वो उसको ताजिंदगी
जबकि वो
सिद्ध करते रहे
अपना स्वार्थ
और
मीठे बोल
बोलते रहे
उसकी भावनाओं
से खेलते रहे
वो इतनी भोली
सभी के
दुःख-सुख को
समझती अपना
अपनों की छोटी सी
चोट को
वो ना देख
पाती
छोड़ सब कुछ
वो दौड़ी चली
जाती
अपना सब कुछ
न्योछावर करने को
रहती तत्पर
जबकि
सभी उसके सभी अपने
स्वार्थपूर्ति के लिए
करते उसका
इस्तेमाल
वो सरल ,निर्मल
निश्छल,निष्पाप
मिटती रही घुलती रही
मानवीय संवेदनाओं में
ये सोचती रही
की एक दिन तो आयेगा
जब सभी अपने सोचेंगे
मैं क्या हूँ?
और एक दिन ऐसा भी आया
जब सब खत्म था
क्योंकि
सभी के मुंह में सिर्फ
चंद अलफाज़ ही थे
बेचारी च:च:च:च:
बहुत नेक थी.. च:च:च:च:

2 comments:

  1. और एक दिन ऐसा भी आया
    जब सब खत्म था
    क्योंकि
    सभी के मुंह में सिर्फ
    चंद अलफाज़ ही थे
    बेचारी च:च:च:च:
    बहुत नेक थी.. च:च:च:
    bahut marmik abhivyakti.

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  2. बहुत खूब गहन अभिव्यक्ति...मन को छू गयी प्रस्तुति

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