दीवारे घर पे मेरे जब बन गयी
तलावारे घर पे मेरे तब तन गयी
टूट गया घरौंदा जो संजोया मैंने
जुबाँ की बात हर जुबान बन गयी
किया एक खून पसीना को जब मैंने
मिले जब दिल तो छत भी बन गयी
हुए जब दुश्मन सगे भाई-भाई
घर में मेरे तब खाई बन गयी
रुका नही ज़हर भरा जो दिल में
हथेलियाँ भी खूनों से मेरी सन गयी
किस्सा हर घर का,है हाले दिल का
ज्योति भी रोकर इसमें ही रम गयी
तलावारे घर पे मेरे तब तन गयी
टूट गया घरौंदा जो संजोया मैंने
जुबाँ की बात हर जुबान बन गयी
किया एक खून पसीना को जब मैंने
मिले जब दिल तो छत भी बन गयी
हुए जब दुश्मन सगे भाई-भाई
घर में मेरे तब खाई बन गयी
रुका नही ज़हर भरा जो दिल में
हथेलियाँ भी खूनों से मेरी सन गयी
किस्सा हर घर का,है हाले दिल का
ज्योति भी रोकर इसमें ही रम गयी
अच्छा लिखा है. बधाई
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