Wednesday, February 29, 2012

तुम में ही सब मेरे जवाब नज़र आते हैं

बदले बदले से अंदाज़ नज़र आते हैं
आसमान में महताब नज़र आते हैं

कैसे कह दूँ दिल का हाले बयाँ जानम
गुलिस्ताँ के सूखे गुलाब नज़र आते हैं

इतने बढ़ गए मेरे दिल के स्याह अंधेरे
जलते चिराग भी बे-नूर नज़र आते हैं

इतने उठाये सवालात बे-रहम दुनिया ने 
तुम में ही सब मेरे जवाब नज़र आते हैं

बयान करूँ क्या मैं राज-ए-जिंदगी "ज्योति"
अपनी किताब के पन्ने खुले नज़र आते हैं

Thursday, February 23, 2012

भूलने के लिए उनको ये बहाना अच्छा है भूलने के लिए उनको ये बहाना अच्छा है

कहीं और प्यार में दिल को लगाये रखिए
भूलने के लिए उनको ये बहाना अच्छा है

वो मुझे भूल खुश रहे होकर किसी और के 
बुरी साबित हो गिरूँ नज़रों में ये अच्छा है

सोचती हूँ कभी तनहा ये मेरी जिंदगी क्या है 
कभी हुई उसकी जीने को ये ख्याल अच्छा है

सब से छुपाए रखा दर्दे दिल मुस्कुराकर मैंने 
पैमाना-ए-सब्र न छलके तो "ज्योति"अच्छा है 

Wednesday, February 22, 2012

पंजाब की लड़कियों से हो रहा भेदभाव


पंजाब की लड़कियों से हो रहा भेदभाव
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आजकल के हर अखबार   में ही महिलाओं के ऊपर हुए अत्याचार की खबरे सुर्खियाँ बनती हैं. हम खुद को बहुत सभ्य मानते हैं किन्तु हमारे आचरण पर अब प्रश्न चिन्ह उभरने लगे हैं. लिंग भेद, कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओं पर मर्मान्तक अत्याचार....बलात्कार ...ऐसा संसार कौन चाहता है ..पर ये भी सच है की ऐसा ही चारों और घटित हो रहा है.
 
प्राचीन भारत के इतिहास मे यदि हम झाँकें तो एक बात बहुत अच्छी देखने को मिलती है. वैदिक   काल मे औरतों की स्थिति बहुत अच्छी थी. उस युग में औरतों को जीने के पूरे अधिकार मिले हुए थे . घर हो या बाहर औरतों की इज़्ज़त होती थी उनका अपना एक अलग स्थान था .
उनको  पुरुषों के समान अधिकार  प्राप्त थे.  यहाँ तक की वेद भी उनके ज्ञान से अपने आकार में आये. वेदों को हम विश्व की सर्वोताम धरोहर कहते हैं.  हम सीता, सावित्री, मीरा की औलाद हैं . मदालसा  , झाँसी की रानी जैसे उच्च चरित्र भारतीय महिलाओं के ही रहे हैं. किंतु कितने दुख की बात है आज हमारे इस पढ़े लिखे समाज़ मे औरतें जो  आगे बढ़ रही हैं   उनको हमारा समाज़ वो स्थान नहीं दे पाया जिसकी वो हकदार हैं. हमारे इस आधुनिक पढ़े लिखे समाज़ मे आज भी औरतों को दुख झेलने पड़ रहे है. आज भी लड़कियों को    भ्रूण हत्या कर  गर्भ में ही मार दिया  जाता है. उनके पैदा होने  पर कोई   ढोल तमाशा नहीं होता . समझ से बहार की बात है की लड़के ही संसार चलाते हैं ? लड़कियों की आवश्यकता नहीं है  इस  समाज को ?  लड़के और लड़कियों के अनुपात मे आज लड़कियों की  संख्या में लगातार कमीं आ रही है. एक हज़ार लड़कों  में  लड़कियों के संख्या भारत में औसतन ९०० के करीब होगी सर्वेक्षण के मुताबिक देश के कई बड़े राज्यों पंजाब, हरियाणा  आदि राज्यों में यह प्रतिशत इस से कहीं कम है. पंजाब मे तो ये प्रतिशत एक हज़ार के पीछे ८२६ है .  आज पंजाब एक ऐसा राज्य है यहाँ लड़कियों की स्थिति बहुत सोचनीय और दयनीय है  हर नई सुबह की किरण  इन लड़कियों के लिए कोई ना कोई दुख लेकर   आती है.  पंजाब में एक बड़ा कारण दहेज़ प्रथा भी है लड़कियों की हत्या की और दूसरा बड़ा कारण है महिलाओं की अशिक्षा .  आज लड़कियाँ कितनी भी पढ़ी लिखी हों उनको प्रताड़ित किया ही  जाता है.  इसका कारन है हमारी सामाजिक मान्यताएं. आज भी पति परमेश्वर कहलवाना पसंद करता है. करवा चौथ का व्रत रखे तो पत्नी ..लेकिन क्या koi व्रत ऐसा ही पति रखता है अपनी पत्नी के लिए...जी नहीं. वह तो ख्वाव सजाये रहता है की कब मरे तो नया खून चखने को मिले . औरत मात्र  गरम  गोस्त बनकर  रह गयी है.   एक अन्य  कारण समाज़ का वो अमीर  वर्ग  भी है जो अपनी लड़कियों को ढेर सारा दान दहेज़ देते हैं उनका विवाह पूरी शानों शौकत से करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं . इससे इस कुरीति को और बढ़ावा मिलता है.  अब तो  सरेआम लड़कों की सौदेबाज़ी होने लगी है. मानो कोई   इंसान न होकर वे कोई  सामान हों.

आज हमारे समाज़ ख़ासकर पंजाब में कन्या  भ्रूण हत्या, दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियाँ हमारे समाज़ के लिए अभिशाप बन चुकी हैं जिस कारण हमारी लड़कियों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है,  यदि स्थिति ऐसे ही रही तो वह  दिन दूर नहीं जब हमारे समाज़ मे लड़कियाँ इतनी कम हो जाएँगी कि लड़कों को विवाह के लिए कहीं दूर देश प्रदेशों से लड़कियाँ खरीद के लानी पड़ेंगी, और ये हो भी रहा है.  हमारे पंजाब में इस  के दुष्परिणाम के रूप में आज छोटी छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ रोज़ की बात हो गई है.
 
प्रबुद्ध जनों का यह प्रमुख कर्त्तव्य बन जाता है कि वे समाज में इस अनावश्यक आ रहे तूफ़ान के विषय में सोचें  और इस पर कार्यवाही करें अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब पुरुष कि प्रथम आवश्यकता स्त्री पाना हो जायेगा....और गरीबों को तो शायद वह उपलब्ध भी न हो. इसलिए आज ही कल्पना करो उस भयावह दिन कि जब वाकई ऐसी स्थिति होगी . तब क्या समाज  बहन के बिना, बेटी के बिना...या खुद आदमी माँ और बीबी के बिना ..कैसा  होगा वह दिन?   इस तबाही  को रोकने के लिए हमे  इसके विरुद्ध अभियान चलाकर  लोगों को जागरूक  करना होगा. पढ़े लिखे वर्ग को आगे आना होगा अपने घर आस-पास से इसकी शुरुआत करनी होगी. 
 
इस कार्य में सबसे अहम् भूमिका भी महिलाओं कि होगी . उनको भी दृढ़ होकर इस कन्या हत्या का  बात   विरोध करना होगा.  उन्हें भी तानों  की भाषा  को राग बना होगा.  यह बात सदैव याद रखनी होगी की एक महिला ही दूसरी महिला की दुश्मन नहीं वरन मित्र बने. बहु को बेटी मानना होगा और उसे भी वही अधिकार और हक देना होगा जो वह अपने लिए और अपने बेटे के लिए चाहती   है. सबसे जरुरी है की हम सभी अपनी पुरानी सोच को बदलें और नए ज्ञान सूर्या का वरन कर मानव जाती को बचाएँ.
 
हुआ बेटा तो ढोल बजाया
हुई बेटी तो मातम छाया
बेटा बेटी हों एक सामान
नया सर्जेगा तभी हिन्दुस्तान