जिस्म नहीं हैं औरतें जाने हम कब तक जानेंगे!!
छाये काले गहरे अँधेरे कब यहाँ से भागेंगे !!
प्रेम का बंधन पवित्र देह का कोई बंधन नहीं !!
प्रेम को हम कब हृदय धरातल पर जानेंगे !!
बस गुनाह है यही की आबरू औरत ही है !!
सामान की तरह उसे कब तलक हम लादेंगे!!
खेलेंगे हम जिस्म और ज़ज्बात से भी !!
जब भी होगा मन जिन्दा उसे जला देंगे !!
इतने जानवर हुए इंसान के हम वेश में !!
सीता अब सुरक्षित है नहीं राम के इस देश में !!
काली बनो रणचंडी से हाथ में ले के खड़क !!
तब ही राक्षस,दनुज शक्ति नारी की जानेंगे !!
माँ बने ,बहना बनें ,प्रेमिका , पत्नी बने !!
कब भला नारी को अर्धांग्नी हम मानेंगे !!
सृष्टि की साक्षात् प्रतिमा देखो जरा गौर से !!
अस्तित्व पर अपने कुल्हाड़ी कब तलक मारेंगे!!
लाज नारी को नहीं पौरुष को होनी चाहिए !!
पौरुष हूँ कब तलक झूठे दंभ पालेंगे!!
जीना है गर शांति से ,संतुलन रहे सदा !!
नारी हेय कब तलक समाज में हम मानेंगे !!
कोई अंतर है नहीं,हैं एक दुसरे के लिए !!
सोच बदलेगी गर तभी भाग्य जागेंगे !!
खुशहाली होगी तभी,जब औरत को हम,
मानव समाज का हिस्सा समान मानेंगे !!