Wednesday, December 4, 2013

  • Conversation started Tuesday
  • Jyoti Dang
    Jyoti Dang
    माँ तुम चुप क्यों रही ? जबकि तुम जानती थी - मेरा बालात्कार हुआ है , हे ! पिता कहाँ गया ? तुम्हारा पौरुष बल कैसे मिमिया रहे थे तुम उस वर्दी धारी के समक्ष जिसने तुम्हारे ही सामने मुझे निर्वस्त्र सा कर जांचा था कैसे वह मुझ पर ही लांछन लगाता रहा और तुम मूक खड़े पक्ष तक नहीं ले सके मेरा मैं जानती हूँ कि अभी कई और बार होगा मेरा अधिकृत बालात्कार न्यायालय की हर पेशी पर वकील की हर दलील पर हर नजर काटेगी मेरे वस्त्र हर एक देखेगा कामुकता से मगर ...हे ! पिता क्या तुम बता सकते हो ? मेरे लिए जीवन ऐसा क्यों है ? मैं कोई धरती नहीं हूँ जो धैर्य से सब सहन कर ले मुझे चंडी बनना ही होगा अब

Wednesday, November 27, 2013

१.मैं मानती हूँ कि तुमसे नहीं मिलती पहले सी
 मगर कोई भी सांस नहीं लेती हूँ मैं तेरे बिना
२.ज़माना गुरेज करे तो करे तुम खफा मत होना
बहुत मुश्किल से मिलता है दिल मुझसे  जुदा मत होना
३.तुम्हें दूँ भी तो क्या सब फानी है "ज्योति"
ये मुहब्बत की दुआ देती हूँ तू शाद रहे
४.ये ताना न दो हमें हम की याद नहीं करते हैं "ज्योति"
 कौनसी रात गुजरी है जब अश्कों की बरसात नहीं करते हैं
५.मेरी नजर जब भी चूमती है तुम्हें नजर पे नाज होता है
ए खुदा कभी तो छू के मुझे मेरे वज़ूद को ख़ास कर दे..
६.तुम मेरे दिल हो मगर पेशानी पर तिल की तरह
कैसे कह दूं कि तुम मेरी पहचान नहीं हो "ज्योति"
६.जल भी जाऊं तो कोई हर्ज नहीं है मुझको "ज्योति"
काश जलने पे मेरी तुमसे मिलने की तमन्ना न जले.

Sunday, November 10, 2013

जिंदगी अभी तक मिली ही नहीं , एक बार देखि थी छोटी सी झलक लगा था जैसे पा लिया है उसको न जाने कहाँ छिप गयी ......वह पथरा गयीं हैं आँखें....राह तकते साँस फूलने लगी है सीने में अब बाट जोहते हुए..... जिंदगी तेरी कहीं ऐसा न हो ...फिर कि तुम मुझे खोजो और मैं खो जाऊं कहीं जिंदगी जब तक सांस है तन में आस है मिलने की तुमसे मुझे टब कब मिलोगी, कहो न .कहो न

Monday, October 21, 2013

न लाना तुम श्रृंगार सजन तुम आ जाना व्याकुल मेरे मन प्राण चैन तुम दे जाना
हर दिन आकर ये चाँद तेरा दिलाता भान तुझको नित निहारा दर्श नयन को दे जाना
कैसे करूँ श्रृंगार तडपे हैं सजन मेरा प्यार स्नेह की भीगी एक पुकार प्रियवर दे जाना
तुम भूले वचन अनेक यह याद रहे एक जन्म जन्म का नेह न तुम विसरा जाना
नहीं मांगूं सजन कोई हार रोये है प्यार बाहों का अपना हार ज्योति को पहना जाना........
1.जिंदगी के दिन हमने कैसे गुज़ारे हैं दुश्मनों से जीते हैं दोस्तों से हारे हैं

2.अपनी भी नज़र है नदी के बहाव पर
जिंदगी सवार है कागज की नाव पर

3.तुम बस नजर मिलने को प्यार समझे "ज्योति"
हम तुम्हें दिल में तलाशते रहे नाहक

4.वो कौन सा दिन है जब तुम नहीं थे साथ मेरे
मुझे तो जिस तरफ देखा तुमही नजर आये "ज्योति"
35.तुम कहाँ कम हो किसी खजाने से और खोजूं "ज्योति"
तुम को पाया है तो लगता जहाँ मिला है मुझे

Monday, October 7, 2013

1.दूर तुम दूर मैं अब चाहत पनाह मांगती है दूर कैसे करूँ ख्याल तेरा रूह काँप जाती है
2.वो और होंगे जो डर गए होंगे रुशवाई से इश्क दीवाना तो कोई विरला ही होता है
3.मेरे हिस्से का प्यार भी तुम ले लो 
बस अपनी दोस्ती हमें दे दो
4.किसी की आँख में क्या देखूं मैं कहो 
आँख अपने ही आंसुओं से धुंधलाई है

Monday, September 23, 2013

औरत को तुम क्या समझते हो ? जब देखो तुम्हारी निगाहें घूरती रहती हैं .जवान जिस्म लार टपकती रहती है ... सहवास की आस में जागते हुए स्वप्न देखते हो तुम तुम्हारी अपूर्ण इच्छाओं से कितनी बार होता है वस्त्रों में स्खलन तुम्हारा फिर भी तुम मनाते हो महिला दिवस मदर्स्र डे..... पुत्री दिवस और यह आशा भी करते हो स्त्रियाँ बांधती रहे कलाई पर रंगीन सजधज भरी राखियाँ छोड़ दो दिवास्वप्न देखना अब स्त्रियाँ उसे ही रक्षा बंधन सूत्र बांधेंगी जो इस लायक हों आज मैं अपनी ही बेटी को रक्षा का सूत्र बाँध रही हूँ जो मेरे साथ है ..मेरी दोस्त और मेरी रक्षक बनकर