सूरज हूँ मैं कोई अँधेरा नहीं
अनेक रूपों में आता..हूँ मैं
साड़ी सृष्टि मुझसे ही... है
मेरा ही विस्तार है ..जगत
तुम्हारी पूजा किसी भी रूप में हो
मुझ तक ही पहुंचती है वह
तुम्हारी पद्धतियाँ जो रची हैं तुमने
केवल वाही पृथक हैं बस
अनेक रूपों में आता..हूँ मैं
साड़ी सृष्टि मुझसे ही... है
मेरा ही विस्तार है ..जगत
तुम्हारी पूजा किसी भी रूप में हो
मुझ तक ही पहुंचती है वह
तुम्हारी पद्धतियाँ जो रची हैं तुमने
केवल वाही पृथक हैं बस
मार्ग अलग है ......रूप भी अलग
किन्तु पूजा आत्मा का विषय है
आत्मा का न धर्म है न जाति
इसलिए हर पूजा मेरी है दोस्त
फिर मंदिरों की शक्लों में तुम
कैसे उलझे हुए हो, तुम ही सोचो
मैंने तुम्हे इंसान बनाया है दोस्त
तुम मेरे रूप को क्या मान बैठे ???
मेरी तस्वीर से प्यार मत करो
तुम मेरा ही अंश हो दोस्त
मुझे जानो मेरे तत्व रूप से
यही सच्चा मार्ग है भक्ति का
किन्तु पूजा आत्मा का विषय है
आत्मा का न धर्म है न जाति
इसलिए हर पूजा मेरी है दोस्त
फिर मंदिरों की शक्लों में तुम
कैसे उलझे हुए हो, तुम ही सोचो
मैंने तुम्हे इंसान बनाया है दोस्त
तुम मेरे रूप को क्या मान बैठे ???
मेरी तस्वीर से प्यार मत करो
तुम मेरा ही अंश हो दोस्त
मुझे जानो मेरे तत्व रूप से
यही सच्चा मार्ग है भक्ति का
सही कहा आपने
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteविजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!