Tuesday, December 4, 2012

जब छूटा है साथ सयंम का 
हम जानते हैं सदा बुरा हुआ है 
सयंम का हनन ही कारण है 
महाभारत और रावण वध का 
युग बदले किन्तु मानव नहीं 
आज भी दिव्यता को भोग्या 
मानता है ना समझ पुरूष 
यौवन और पौरूष की आंधी ने 
पशुवत रत असंयमित नर 
राम नहीं है दंड देने को 
किन्तु इस वानर पन पर 
प्रक्रति ने नकेल कसी है 
वह दंडित करती है स्वयंम 
तोड़ने वालों को सयंम नियम 
लालच,दुर्व्यसन,दैहिक आकर्षण 
ये सब दुर्गुनोंमय प्रवृतियाँ 
आज भी विधमान हैं जीवनमें 
बस नाम बदल गया है इसका 
अब हम इसे एड्स कहते हैं 
जो खा जाती है आत्मसम्मान 
प्रतिष्ठा,परिवार, प्रेम और पवित्रता 
दोष सामूहिक है नर नारी का 
आज की रामायण का श्रेष्ठ चरित्र 
तुम्हारा सयंम है , राम है 
हे मानव तू सयंम कर 
अपने जीवन का मूल्य धर 
महज़ चूमने की चाहत में 
वासना पंक में ना लिपित हो 
मानव तू देवों से श्रेष्ठ है 
तरसते देव नर तन को 
वृथा मत नष्ट कर इसको 
पकड़ कर डोर सयंम की 
जीवन का हंस कर सफ़र कर.......

1 comment:

  1. jeewan ka hans kar safar kar.....wahhh
    http://ehsaasmere.blogspot.in/

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