Monday, November 22, 2010

दिए की बुझती लो!!

मैं क्या हूँ
एक दिए की
बुझती लो!!
डगमगाती
ले हिलोरे
करती वक़्त
रुपी हवा का
सामना !!
जब ख़तम
होगा
निष्ठुर
नियति का
ये तेल !!
ख़तम होगी
यह जिन्दगी
रुपी बाती भी !!
ओर तब ..
लगेगा एक
पूर्ण विराम !!
दे उजाला
बुझ जाएगा
ये दिया!!
जो खुद को
अँधेरे में
रख !!
कर रहा
जिन्दगी को
रोशन

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