कुछ नहीं है मेरे पास
अब वोह दिन रहे नहीं
गलतिया हुई हज़ार
अब तो कोई क्षमा नहीं
दिल सुलगता रहा
अरमान मरते रहे
सागर में उठती लहरों
का कोई किनारा नहीं
विरह की ये बेला
मन आज है अकेला
ख़ाक हुए सपनों में
कोई रंग भरा नहीं
कराहता हुआ मन
सूनी पड़ चुकी जिन्दगी
क्यूँ कोई अपनी जिन्दगी
को प्यार से जिया नहीं
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