अधूरी हूँ आज भी
पा के तुम्हारे
संपूर्ण प्यार को
क्यूंकि
डरते हो आज भी
तुम
मुझे अपनाने को
सम्पूर्ण रूप से
क्यूंकि
नहीं कर पाए हो
विश्वास मुझ पे
तुम
कमी कुछ मुझ में
रही होगी
कैसे और कब तुम्हे
अहसास होगा
मेरे असीम प्रेम का
तुम
करते हो प्यार मुझे
मोह नहीं
करती हूँ प्यार मैं भी
किन्तु
मोह के साथ
शायद
यही कमी है मेरी
मोह करना क्या
है गुनाह
तो हाँ
किया है मैंने
ये गुनाह
क्या सजा होगी
इसकी
नहीं जानती
पा के तुम्हारे
संपूर्ण प्यार को
क्यूंकि
डरते हो आज भी
तुम
मुझे अपनाने को
सम्पूर्ण रूप से
क्यूंकि
नहीं कर पाए हो
विश्वास मुझ पे
तुम
कमी कुछ मुझ में
रही होगी
कैसे और कब तुम्हे
अहसास होगा
मेरे असीम प्रेम का
तुम
करते हो प्यार मुझे
मोह नहीं
करती हूँ प्यार मैं भी
किन्तु
मोह के साथ
शायद
यही कमी है मेरी
मोह करना क्या
है गुनाह
तो हाँ
किया है मैंने
ये गुनाह
क्या सजा होगी
इसकी
नहीं जानती
बेहतरीन।
ReplyDelete----
कल 05/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बेहद खुबसूरत लिखा है |
ReplyDeleteसुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीन प्रस्तुतियों पर पधारने का निमंत्रण स्वीकार करें.
भावपूर्ण कविता के लिए आभार....
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढि़या।
ReplyDeleteमाया मोह में तो हमारा पूर्ण अस्तित्व ही फंसा है... प्रेम की पराकाष्ठा तक पहुँचने की राह मोह से हो कर ही जाती है...
ReplyDeleteदोनों ही सत्य हैं... बड़ा सत्य छोटे सत्य को कभी कमतर नहीं आंकता!
bahut khub
ReplyDeletejyoti siter ji bohat hi vadiya ji
ReplyDeleteati sundar rachana hai...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!
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