जखमी हाथ हुए,
ग़लती अपनी थी
मिटाना चाहा मैने
हाथ की लकीर को
किसी को पाने की
चाहत में
हो ना सका कभी
वो मेरा
तड़प जो रही
मेरे दिल में
उसके लिए
चाहत जो मेरी
उसको पाने की
उस पे
जिंदगी लुटाने की
आती जाती हर
साँस में
बसा जो उसका
है नाम
दिल का हर हिस्सा
है उसके नाम
रोम रोम में
बस चुका वो
हर धड़कन बन
चुका वो
बताए कोई मुझे
समझाए कोई मुझे
उसको कैसे
बिसार दूँ
जिंदगी से कैसे
निकाल दूँ
hatane ka prayaas sahi nahi, bas maun rahna hai...
ReplyDeleteमेरे इस शेर पर ग़ौर फ़रमायें तकलीफ़ शायद कम हो जाये-
ReplyDeleteतू यार! ख़ुश रहे, भले मेरे रक़ीब के साथ,
मगर ख़याल रहे के अज़ाब भी होगा।
बहुत ख़ूब
सुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है .
ReplyDeleteहटाया तो जा ही नहीं सकता बस दिल कि दिल में रखना है बढ़िया प्रस्तुति ...)समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
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