चले थे गैरों की
बस्ती में
घर बसाने
किसी गैर को
अपना बनाने
नीलाम हो गए
सरे-मज़हर
बात पहुँची
दूर तलक
एक मुद्दत हुई
छुपाये इस राज़
को
आज रुसवा हो
गए
उनके दिल से दूर
हो गए
न जाने क्या बात
हुई
उजली सुबह मेरे
लिए
आज काली स्याह
रात हुई
हसीं पलों को
क्यूँ वो
यूं ही भुला बैठे
अब हम को
भूली बिसरी याद
बना बैठे
ऐसी क्या खता
हम कर बैठे
वो जो सरे-मज़हर
हमें नीलम कर बैठे
बस्ती में
घर बसाने
किसी गैर को
अपना बनाने
नीलाम हो गए
सरे-मज़हर
बात पहुँची
दूर तलक
एक मुद्दत हुई
छुपाये इस राज़
को
आज रुसवा हो
गए
उनके दिल से दूर
हो गए
न जाने क्या बात
हुई
उजली सुबह मेरे
लिए
आज काली स्याह
रात हुई
हसीं पलों को
क्यूँ वो
यूं ही भुला बैठे
अब हम को
भूली बिसरी याद
बना बैठे
ऐसी क्या खता
हम कर बैठे
वो जो सरे-मज़हर
हमें नीलम कर बैठे
बहुत सुन्दर प्रविष्टि...बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसुंदर प्रविष्टि... समय मिल तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/