रोटी जुटाने के लिए रोज़ जो घिसता है एडियाँ
उस शख्स से आप बस आते का भाव पूछिए !!
जिनको हज़म नहीं है खाना भी अब जनाब
है मिजाज़ क्या मौसम का उनसे ही पूछिए !!
सुबह ही बेधुले हुए मुहँ चलते हैं काम को
बोझ कितना है लाश का क्या आप पूछिए !!
खुद को किया सलाम खुद आईने के सामने
जिंदगी की इबादत का अब न अंजाम पूछिए !!!
खुद मौत दर रही हो आने से जिस शख्स से
खुशियों की आमद का न कोई ख्याल पूछिए !!
हर दुःख है जवान ज्यों कुंवारी कोई बेटी
हालात हैं क्या दिल के अब न आप पूछिए !!
कांधों पे डाले चल रहे हैं हम सुखों की लाश
किस हाल में'ज्योति ' न अब बेकार पूछिए !!. jyoti dang
उस शख्स से आप बस आते का भाव पूछिए !!
जिनको हज़म नहीं है खाना भी अब जनाब
है मिजाज़ क्या मौसम का उनसे ही पूछिए !!
सुबह ही बेधुले हुए मुहँ चलते हैं काम को
बोझ कितना है लाश का क्या आप पूछिए !!
खुद को किया सलाम खुद आईने के सामने
जिंदगी की इबादत का अब न अंजाम पूछिए !!!
खुद मौत दर रही हो आने से जिस शख्स से
खुशियों की आमद का न कोई ख्याल पूछिए !!
हर दुःख है जवान ज्यों कुंवारी कोई बेटी
हालात हैं क्या दिल के अब न आप पूछिए !!
कांधों पे डाले चल रहे हैं हम सुखों की लाश
किस हाल में'ज्योति ' न अब बेकार पूछिए !!. jyoti dang
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ReplyDeleteखुद को किया सलाम खुद आईने के सामने
ReplyDeleteजिंदगी की इबादत का अब न अंजाम पूछिए !!!
...बहुत प्रभावी प्रस्तुति..(अगर अन्यथा न लें तो टाइपिंग की गलतियाँ ठीक कर लें..दूसरी पंक्ति में 'आटे', और आगे मौत 'डर')