ये मेरी सब से पहली लिखी कविता है जो मैने अपनी माँ के लिए लिखी थी
वो एक सांवला सा चेहरा
चश्मे से झाँकती दो आँखें
चेहरे पर पड़ती झुर्रियाँ
जैसे अनुभव की लकीरें
आधी से ज़्यादा आयु देख
चुकी, ये है मेरी माँ
वो पल, वो माह वो साल
जो मैने उनके साथ बिताए
सुबह सुबह उठना, आँगन
बुहारना, बर्तनों की खटपट
चुहले पर रोटियाँ सेकना
हम सब के लिए दिन रात
ख़टते रहना, अपना कोई होश
ना होना, ये है मेरी माँ
हम कब और कैसे बड़े हुए
इसका कोई अनुमान ना था
मेरे बाबा को,उनका होना, ना
होना,एक समान था मेरी माँ
के लिए,तजिंदगी गुज़ार दी
बाबा के साथ,हमारी खातिर
ये है मेरी माँ
बुढ़ापे में अकेली रह गई
जिन बेटों के लिए मरती
रही,वही छोड़ कर चले गए
अपनी अपनी राहों पर,फिर
भी कोई शिकवा शिकायत
नहीं,उस परमात्मा से,बस
सब का भला सोचती है
ये है मेरी माँ....................... jyoti dang
वो एक सांवला सा चेहरा
चश्मे से झाँकती दो आँखें
चेहरे पर पड़ती झुर्रियाँ
जैसे अनुभव की लकीरें
आधी से ज़्यादा आयु देख
चुकी, ये है मेरी माँ
वो पल, वो माह वो साल
जो मैने उनके साथ बिताए
सुबह सुबह उठना, आँगन
बुहारना, बर्तनों की खटपट
चुहले पर रोटियाँ सेकना
हम सब के लिए दिन रात
ख़टते रहना, अपना कोई होश
ना होना, ये है मेरी माँ
हम कब और कैसे बड़े हुए
इसका कोई अनुमान ना था
मेरे बाबा को,उनका होना, ना
होना,एक समान था मेरी माँ
के लिए,तजिंदगी गुज़ार दी
बाबा के साथ,हमारी खातिर
ये है मेरी माँ
बुढ़ापे में अकेली रह गई
जिन बेटों के लिए मरती
रही,वही छोड़ कर चले गए
अपनी अपनी राहों पर,फिर
भी कोई शिकवा शिकायत
नहीं,उस परमात्मा से,बस
सब का भला सोचती है
ये है मेरी माँ....................... jyoti dang
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