Tuesday, November 15, 2011

मैं और मेरी तन्हाई


मैं और मेरी तन्हाई 
मिलते हैं अक्सर 
बंद अँधेरे कमरे में 
बातें होती अक्सर
उन पलों की 
बिताये थे जो साथ साथ
यादें तुम्हारी अक्सर
चलती हैं साथ मेरे
तन्हाई भी अच्छी लगती
मीठी मीठी तुम्हारी बातें
साथ देती
मेरी तन्हाई में अक्सर
चुपचाप चले आते हो
मेरी यादों से निकल
एक साया बन
मेरे साथ बैठ जाते हो
ये अहसास करवाते हो
हकीकत हो तुम
कोई याद नहीं
जिन्दगी हो मेरी तुम
कोई बीती बात नहीं
jyoti dang
16 minutes ago

3 comments:

  1. मेरी यादों से निकल
    एक साया बन
    मेरे साथ बैठ जाते हो
    ये अहसास करवाते हो
    हकीकत हो तुम
    कोई याद नहीं

    बहुत खूबसूरत एहसास ..अच्छी प्रस्तुति

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  2. मैं और मेरी तन्हाई...........बहुत ही खुबसूरत रचना....

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