हम दो जिस्म एक जान हैं
तुम बनके सूरज
आए हो इस अंधेरी
जिंदगी में
एक उजाला लाये हो
ऐसा
जिंदगी रौशन हुई
गमों के अंधेरों से
मुक्त हुआ ये जीवन
टूटे सभी वो भ्रम
जो समझी थी
जिंदगी का सच्च
प्यार भरी वो
तुम्हारी एक नज़र
छेड़ देती
दिल की उस वीना
के सभी तार
फिर बजने लगता है
वो मधुर प्यार भरा
संगीत
तुम्हारी हर बात को
आत्मसात करती हूँ
अब इस जिंदगी में
सुबह की घास पे
पड़ी औंस की वो
बूँदें
चमकती हैं मोतियों जैसी
मेरी आँखें दमक उठती
जब एक बार तुझे
निहार लेती
गम जब आँसू बन
छलकते हैं
तुम्हारे हाथ बिन कुछ
कहे
अपने आप मेरे चेहरे को
सपर्श करते हुए
उनको पोंछते हैं
ये अहसास करवा जाते
कि मत रो
मैं हूँ ना तुम्हारे आसपास
तब जान पाती हूँ
तुम हो ना मेरे आसपास
नहीं तुम तो मेरे भीतर हो
मेरे रोम रोम में
मेरे हर अहसास में
मेरी हर बात में
तुम अलग कहाँ हो
हम दो जिस्म
एक जान हैं
jyoti dang
बहुत ही भावपूर्ण रचना.....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....
ReplyDeletebahut hi pyaari rachna..
ReplyDeletejai hind jai bharat
nice
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