गूँजा करती थी हंसी जिसकी यहाँ कल तक
इंसानियत हुई शर्मसार यहाँ सरे बाज़ार में
सिसकियाँ गूंजती हैं अब चारों ओर कानों में
मातम पसरा है उस शहनाइयों सजे घर में
खून से सना जवान सड़क पर तड़पता रहा
इंसानियत न दिखी मगर किसी के दिल में
मदद को हाथ कोई समय रहते नहीं आया
डोली बदल गयी यकायक उसकी अर्थी में
कौन खुनी है अब फैसला ये करो"ज्योति"
कितने कातिल हैं भरे इस दौड़ती दुनिया में..... jyoti dang
इंसानियत हुई शर्मसार यहाँ सरे बाज़ार में
सिसकियाँ गूंजती हैं अब चारों ओर कानों में
मातम पसरा है उस शहनाइयों सजे घर में
खून से सना जवान सड़क पर तड़पता रहा
इंसानियत न दिखी मगर किसी के दिल में
मदद को हाथ कोई समय रहते नहीं आया
डोली बदल गयी यकायक उसकी अर्थी में
कौन खुनी है अब फैसला ये करो"ज्योति"
कितने कातिल हैं भरे इस दौड़ती दुनिया में..... jyoti dang
hiiiiज्योति ..बहुत वक्त से आपको पढ़ रही हूँ
ReplyDeleteआपसे एक बात कहानी थी कि आप लिखने के साथ साथ दूसरे ब्लोग्स पर जा कर कमेंट्स जरुर दिया करें ...इस से आप के पढ़ने और दोस्तों का दायरा बढेगा..