Tuesday, March 5, 2013

गूँजा करती थी हंसी जिसकी यहाँ कल तक 
इंसानियत हुई शर्मसार यहाँ सरे बाज़ार में 

सिसकियाँ गूंजती हैं अब चारों ओर कानों में 
मातम पसरा है उस शहनाइयों सजे घर में 

खून से सना जवान सड़क पर तड़पता रहा 
इंसानियत न दिखी मगर किसी के दिल में 

मदद को हाथ कोई समय रहते नहीं आया
डोली बदल गयी यकायक उसकी अर्थी में

कौन खुनी है अब फैसला ये करो"ज्योति"
कितने कातिल हैं भरे इस दौड़ती दुनिया में..... jyoti dang

1 comment:

  1. hiiiiज्योति ..बहुत वक्त से आपको पढ़ रही हूँ
    आपसे एक बात कहानी थी कि आप लिखने के साथ साथ दूसरे ब्लोग्स पर जा कर कमेंट्स जरुर दिया करें ...इस से आप के पढ़ने और दोस्तों का दायरा बढेगा..

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