आज कलम चुपचाप
एक कोने में पड़ी
रो रही है
खुद की बेबसी पे
वो सीलन भरा कमरा
टूटी हुई मेज़ पे
अनगिनत पुरानी सी
किताबें
धुल फांकती
एक पुरानी
फटी सी डायरी
कभी जिस पे
लिखे गए थे
चंद शब्द
जिन्दगी के कुछ लम्हे
अपनी यादों में संजोये
कुछ खट्टे
कुछ मीठे
पल संजोये
सोचती
आज कोई नहीं
लिखने वाला
कुछ भी
मैं चुपचाप पड़ी
हूँ
एक कोने में
कोई नहीं
आज मुझे
पूछने वाला
क्यूंकि आज मैं
पुरानी हो गई
जिसका कोई
मुल्य अब नहीं
इसलिए फैंक दी गई
एक कोने में
ye un budhe logon ko samarpit jinko unki aoulaad faltu samjhke ghar ke ek kone me ya vridh ashram faink dete hain
एक कोने में पड़ी
रो रही है
खुद की बेबसी पे
वो सीलन भरा कमरा
टूटी हुई मेज़ पे
अनगिनत पुरानी सी
किताबें
धुल फांकती
एक पुरानी
फटी सी डायरी
कभी जिस पे
लिखे गए थे
चंद शब्द
जिन्दगी के कुछ लम्हे
अपनी यादों में संजोये
कुछ खट्टे
कुछ मीठे
पल संजोये
सोचती
आज कोई नहीं
लिखने वाला
कुछ भी
मैं चुपचाप पड़ी
हूँ
एक कोने में
कोई नहीं
आज मुझे
पूछने वाला
क्यूंकि आज मैं
पुरानी हो गई
जिसका कोई
मुल्य अब नहीं
इसलिए फैंक दी गई
एक कोने में
ye un budhe logon ko samarpit jinko unki aoulaad faltu samjhke ghar ke ek kone me ya vridh ashram faink dete hain
साधु-साधु
ReplyDeleteफिर से उठाईये कलम नयी लगेगी ..
ReplyDeleteसंगीता जी की बात से सहमत हूँ
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