Tuesday, June 28, 2011

अश्क हम पलकों में छिपा लेते

चरागे दिल जला लेते कैसी तुम ये बला लेते
करारे दिल नही मिलता तो हाल-ऐ-ग़म सुना लेते

दरारें पड़ गयी दिल में उन्हें कैसे मिटाऊं मैं
दिखाते नही हँसी चेहरा नकाबों में छुपा लेते

समेटे दर्द दिल ने आज चमन में बहार आई जब
कि तुम गुलाब सहज लेना हम कांटे छुपा लेते

बेवफा जिन्दगी तुझे प्यार निभाना न आया
वफ़ा जो करते तुम तो तुम्हे अपना बना लेते

हमारी मुहब्बत पे ऐतबार होता उन्हें गर जो
चाँद तारों पे अपना हम आशियाना बना लेते

मालूम होता कि तुम हो बस मेरे दिल की धड़कन
तो इस जालिम ज़माने से दुश्मनी भी निभा लेते

मुख यूं न मोड़ते आँखें यूं न फेर लेते "ऐ ज्योति"
बहाते यूँ न अश्क हम पलकों में छिपा लेते

Monday, June 27, 2011

तन्हाई


मेरे दिल से मेरी ये जाँ निकले
जैसे घर से कोई मेहमाँ निकले   

शब् रोती रही शबनम के तले 
दर्द आँखों से जब परेशाँ निकले    

उनकी फितरत थी एक बेगानों सी 
गैरों पे जो वो मेहरबाँ निकले   
  
तोड़ के दिल मेरा वो जब चल दिए  
सब कहते रहे वो नादाँ निकले  

हाथ खाली थे जब मै आयी थी" ज्योति "
आज अपनों के बीच हम तन्हां निकले   

Saturday, June 25, 2011

याद आया है आज फिर मुस्कराना उनका

पीर में पीर बढ़ाना और तडपाना उनका   
दर्द रह रह के बताता है ठिकाना उनका  

जख्म दिया ऐसा जो कभी ज़ख्म न लगे
याद आया है आज मरहम लगाना उनका  

आज फिर आया है बरसात का रंगीन मौसम
याद आया है फिर तन मन भिगाना उनका  

आज भी कडकी है आसमा में बिजली यहाँ 
याद आया है बाजुओं में छिप जाना उनका

जी में आता है हो जाए एक बार फिर उनका तस्सवुर
मेरी गजलों में अब भी है ठिकाना उनका 

आज फिर रो लेने दो उनकी यादों में "ज्योति" 
याद आया है आज फिर मुस्कराना उनका     

Tuesday, June 21, 2011

भगवान्


प्रगति के रथ पे
सवार मनुष्य
चलता ऐसे
कुचलता हुआ
सभी की भावनाओं
को
अपने स्वार्थ हेतु
आगे ही आगे
बढ़ता जाता
संवेदनाएं भी
पल पल दम
तोड़ती
दरकते रिश्ते
कलुषित होती
मानवता
चहुँ और
नज़र आती
पैसे की दानवता
अब जी हजूरी
भी जरूरी
पैसे की जो
मजबूरी
प्रेमिका भी
अब उसकी
नोटों से भरी हो
जेब जिस की
दिल में अब वो
अहसास कहाँ
मर चुके हो
जज़्बात यहाँ
लैला मजनूं , हीर राँझा
के अफसाने बन गये
गुजरे ज़माने
के फ़साने
साधू संतों, पीर पैगंबरों
गुरु ,देवी देवताओं की
शिक्षाओं को
भूल
आज इंसान बन बैठा
शैतान
आज करोड़ों रुपये
सोना चाँदी है
साईं के नाम
क्योंकि पैसा ही है
आज का भगवान्

Wednesday, June 15, 2011

दिल में बसे नफरतों के मकान बढ़ रहे


कुछ दर्द बढ़ रहे हैं कुछ दरमान बढ़ रहे हैं 
दिल में बसे नफरतों के मकान बढ़ रहे 

गुर्बत में खोये रहे आरज़ूओं के बचपन 
अमीरी के आलम में लान बढ़ रहे हैं 

भ्रष्टाचार की नैया पे बैठा कौन है मांझी 
लोगों के घरों के साजोसामान बढ़ रहे हैं  

मर रहा किसान आज मेरे वतन का भी 
सूदखोरों के जब से लगान बढ़ रहे हैं 

अब तुम भी सुधर जाओ वायज जहाँ के 
आस्था के मंदिर के अब कान बढ़ रहे हैं 

तकदीरों ने लूटी है ए "ज्योति" तेरी किस्मत 
जलते चरागों तले तूफ़ान बढ़ रहे हैं  

Friday, June 10, 2011

तपिश


गर्मी की दोपहर ने तन्हाई बढा दी है
सूरज ने तपिश संग बांह चढा ली है

आम की फसल आयी थी अबकी बहुत
आँधियों ने आ के जमीं भेट चढा दी है

बदन का पसीना सूखने का नाम नही लेता
ए सी और कूलर ने जी जान लडा दी है

है मुश्किल अब तो दिन में काम करना
बिजली ने फिर रातों की नींदें उड़ा दी है    

छत पे चढ़ जाओ पतंगों का हुजूम दिखे
पापा ने भी बच्चों की जो खर्ची बढा दी है

हर शहर में बीमारियों ने धावा बोल दिया
सुन के डाक्टरों ने अपनी फीस बढ़ा दी है

अब तुम भी ठहर जाओ न निकलो बाहर
मानसून ने अब आने की तारीख बढा दी है   

Saturday, June 4, 2011

बेटी भी तेरी सयानी तो हो

गर राजा भी होगा तो रानी तो होगी
कि अम्मा की लोरी कहानी तो होगी

मोहब्बत को दुश्मन बना लो तुम जितना
कि कान्हा की मीरा दीवानी तो होगी

जलाना है जितना जला लो तुम बहूएँ
कि बेटी भी तेरी सयानी तो होगी

सियासत बिछा ले चाहे गोट जितनी
कि शहीदों के किस्से कहानी तो होगी

बड़े लोग हैं जो,बड़े ही रहेंगे
कि बच्चो की घर में नादानी तो होगी

तुम मुझे भूल जाओ,मुनासिब नही है
कि मोहब्बत की दिल में निशानी तो होगी

"ज्योति" सबकी कहानी बन रही एक जैसी
कि साँसे भी एक दिन आनी जानी तो होगी