Tuesday, December 25, 2012

जब रात की नागिन डसती है,
नस नस में ज़हर उतरता है !!
जब चाँद की किरनें तेज़ी से ,
इस दिल को चीर के आती हैं !!
जब आँख के अन्दर ही आंसू ,
जंजीरों में बंध जाते हैं !!
सब ज़ज्बातों पे छा जाते हैं,
तब याद बहुत तुम आते हो !
घायल अहम् वाले हारे हुए आदमी 
तपता हुआ मन लिए मेरे जैसे दोस्त 
अब लगता है कि रूह बहुत संतप्त है 
इस दिन की शाम और दिल की
धड़कन उदास है 

शोक से डूबा मन बार बार डबडबता है 
और आँख की पुतलियाँ बदहवास देखती हैं 
आज जैसे बुरी शामअगर कभी आये तो 
साथ में अपने पराजय का अहसास लाये तो 
और मेरा अस्तित्व नामोशी बन जाए तो
और मेरे जालीपन खोट का लिहाफ लाये तो
समझना तब एक नये देवता की तलाश है 

Tuesday, December 4, 2012

जब छूटा है साथ सयंम का 
हम जानते हैं सदा बुरा हुआ है 
सयंम का हनन ही कारण है 
महाभारत और रावण वध का 
युग बदले किन्तु मानव नहीं 
आज भी दिव्यता को भोग्या 
मानता है ना समझ पुरूष 
यौवन और पौरूष की आंधी ने 
पशुवत रत असंयमित नर 
राम नहीं है दंड देने को 
किन्तु इस वानर पन पर 
प्रक्रति ने नकेल कसी है 
वह दंडित करती है स्वयंम 
तोड़ने वालों को सयंम नियम 
लालच,दुर्व्यसन,दैहिक आकर्षण 
ये सब दुर्गुनोंमय प्रवृतियाँ 
आज भी विधमान हैं जीवनमें 
बस नाम बदल गया है इसका 
अब हम इसे एड्स कहते हैं 
जो खा जाती है आत्मसम्मान 
प्रतिष्ठा,परिवार, प्रेम और पवित्रता 
दोष सामूहिक है नर नारी का 
आज की रामायण का श्रेष्ठ चरित्र 
तुम्हारा सयंम है , राम है 
हे मानव तू सयंम कर 
अपने जीवन का मूल्य धर 
महज़ चूमने की चाहत में 
वासना पंक में ना लिपित हो 
मानव तू देवों से श्रेष्ठ है 
तरसते देव नर तन को 
वृथा मत नष्ट कर इसको 
पकड़ कर डोर सयंम की 
जीवन का हंस कर सफ़र कर.......

Monday, December 3, 2012


यूं तुमसे चोरी चोरी मिलना
हमको अच्छा लगता है
फिर से उग आया वो बचपन
हमको अच्छा लगता है
चाहे हो जाएँ पचपन के
संग तुम्हारे सारा जीवन
बचपन अच्छा लगता है
तुम्हे देख कर कुछ कुछ
नहीं,सारा अच्छा लगता है
तुम ही जैसे मर्ज़ ऐ दिल
दवा हो, कई जन्मों की
इबादत है इश्क ये मेरा
तुम ही मेरे इस दिल का
सकूं ओ राहत हो, तुम्हे
कैद किया है मैंने निगाहों में
अब कहो दूर मुझसे कैसे जाओगे
ये मेरी मुहब्बत का इम्तिहान होगा
या रब्ब, कबर में भी करीब पाओगे...............