Monday, July 30, 2012

वो इंसान बना दे!!

जो पूरे ना हो वो अरमान मिटा.... दे!!
हसरतों की बस्ती को शमशान बना दे!!

ऐ गैरों के खुदा बस ये तमन्ना है मेरी!!
जी सकूँ औरों के लिए वो इंसान बना दे!!

Sunday, July 29, 2012

होली की आग

उसने मेरी आँखों में होली की आग जलाई है!!
अंग अंग रंगा है जैसे रंगोली तन से सजाई है!!

जवानी की उड़ती है चुनर घटाओं में लहराई है!!
इंद्रधनुष की छटा जैसे फ़िज़ाओं में ..लहराई है!!

Wednesday, July 25, 2012

तू मेरे साथ ना हों मौत भी मंजूर नहीं!!


तू कहीं दूर है लेकिन  तू   कहीं दूर नहीं!!
आँखें मज़बूर सही दिल तो मज़बूर नहीं!!

तू मेरी साँसों में बसा है ऐ हमदम मेरे!!
पास दिल के है सदा तू कहीं दूर तो नहीं!!

तेरी पलकों में छिपी हूँ है ये मालूम तुझे!!
अक्स बन पाऊँ ना बनाना तुम अश्क़ नहीं!!

तेरे होंठों पे मेरा नाम बहुत सजता है प्रिय!!
मेरे दिल में तेरे नाम बिना कुछ भी नहीं!!

तू ही धड़कन तू ही है सोच मेरी हमदम!!
तेरे बिना मेरा जीना भी कोई जीना नहीं!!

मेरी ये उमर तेरी साँसों तलक ही रहे!!
तू मेरे साथ ना हों मौत भी मंजूर नहीं!!

Friday, July 20, 2012

अपनी आँखें झुका लेना

जब कभी मेरी याद आए तुम अपनी आँखें झुका लेना!!
जब कभी करे दिल मिलने को अपनी आँखें झुका लेना!!

दूर हैं तो क्या गम है हर नज़र में तेरा ही अक्स है!!
दिल उदास हो याद करना हमे अपनी आँखें झुका लेना!!

आँसू आएँ जब इन आँखों में उनको छलकने मत देना!!
बना लेना सपना मुझे तो अपनी आँखें झुका लेना!!

मिलन नहीं हमारा आसान है इस जन्म में प्यार का!!
दिल पुकारे अपने प्यार को अपनी आँखें झुका लेना!!

पल पल सताए याद उन बिताए पलों की संग हमारे!!
उदास होना नहीं कभी तुम बस अपनी आँखें झुका लेना

Wednesday, July 18, 2012

मेरे हर गीत में प्रिय! तेरा अनुराग समाया है

सूरज चाँद सितारों में तुम्हे पाया है!!
जिंदगी के हर रंग में तेरा ही साया है!!

जिंदगी का हर रंग तुम ही हो मेरे प्रिय!!
जिंदगी का हर रिश्ता तुम्ही में पाया है!!

मैं धरती हूँ जीवन की ऐसा मैंने माना है 
अपना जीवन तुझसे ही बंधा मैंने पाया है 

दिल के कोरे कागज़ पर तेरा चित्र उकेरा है!!
मेरी हर धड़कन ने तेरा गीत ही गाया है!!

बागों में आई बहार, नया संदेशा लेकर के !!
हर एक फूल में, तेरा ही रूप समाया है!!

बनकर फूल जिंदगी मेरी तुम महकाते हो!!
तेरी खुश्बू में सोंधा सोंधा प्रेम समाया है!!

बन धरती मैं घूमूं चहुँ ओर तेरे दिन रात!!
रवि रश्मि सा प्यार, तुम से ही पाया है!!

तुम हर गीत में रहते हो बनकर अहसास !!
मेरे हर गीत में प्रिय! तेरा अनुराग समाया है!! 

Tuesday, July 17, 2012

दो वक़्त की रोटी के लिए

दो वक़्त की रोटी के लिए 
तन को कैसे जलाती हैं वे?
पेट की आग की खातिर 
जिस्म को कैसे मिटाती हैं वे ? 
ये देखा है कई बार मैने 
उस बदनाम रेड लाइट एरिया में
कोई समझता है क्या उनको ?

एक जिन्दा नरक में बजबजाती 
एक जिंदगी बसती है मानवीय कीड़ों की 
मरती सिसकती है जिंदगी वहाँ पर
उस घोर नर्क में हर पल जैसे
हर रात जब सोना पड़ता है उन्हें
एक नये पति के साथ ही अक्सर
एक बहशी की सुहाग रात सजाने को
साँस दर साँस घुटती हैं वे चुपचाप
एक झूठी हँसी होठों पर सजाये हुए
हर रात एक नया पति एक आदमखोर
नोचने वाला जिस्म को पैसों से उनके
अक्सर मारती हैं वे अपने मन की
कोमल भावनाएँ होने की एक औरत

सज़ाया था उन्होंने भी कभी एक सपना
अपने दिल के घर मंदिर में कोई सुहाना
मरती है वे तिल तल कर अक्सर ही
कुचली हुई भावनाओं की लाश लिए
अपने खून सने दामन में रात भर
होती हैं शिकार बिन दाम भी वे
सरकारी दरिंदों की जिस्मानी भूख की

टूटे हुए जिस्म से करती हैं नयी सुबह की
शुरुआत बेनाम बाप की औलादों के लिए
उन माँ बापों के लिए भी जो हैं , पर नहीं हैं
वे पालती हैं घर, भाई, बहन भी अपने मगर
ये पेट की आग कहाँ बुझती है जीते जी उनकी ?
ढलते हुए जिस्म के साथ वे तलाशती हैं
नए शिकार ..अपनी जिनदगी ढोने के लिए

हाँ वे पापी हैं , मगर समाज करता क्या है ?
कभी आगे क्यों नहीं आया उनके लिए ?
रेड डालता है, भेजता है जेल में भी उन्हें
वहां भी जिस्म के भूखे भेडिये चढ़ते हैं तनपर
अक्सर करती हैं वे दुआ जो सुनी नहीं जाती
मेरे खुदा अगली बार पैदा करना हो तो
याद रखना बिना पेट ही पैदा करना उन्हें
ताकि जीवन में नरक न भोगना पड़े कोई
सिर्फ पेट की आग बुझाने के लिए किसी को
जीना न पड़े ताकि एक जिन्दा लाश बनकर

सिर्फ पेट की रोटी के लिए किसी औरत को

jyoti dang

Friday, July 13, 2012

मौन की भाषा

आज कुछ कहना चाहती हूँ 
हे प्रिय ! मैं तुमसे खुलकर 
सुनोगे तुम मुझे या नहीं ?
जानती हूँ, तुम मुझे सुनोगे
जब बैठी थी मैं बागीचे में
घास की बिछी हरी चादर पर
तुम दूर से चलके आए थे
मेरी पीठ तुम्हारी ओर थी
तुम चुपके से पास बैठ गए
अपना हाथ मेरे हाथ के उपर
तुमने रखा था स्नेहिल, धीरे से
तुम्हारा वो अनुपम स्पर्श मुझे
कितना कुछ कह गया था तब
धीरे से तुम मेरे और करीब आए
मेरी आँखों में आँखें डाल कर
प्यार से निहारा था तुमने मुझे
हम दोनो के दिलों की धड़कनें
कितनी तेज़ी से चलने लगी थी
कुछ ना कह के भी बहुत कुछ
कह गए थे हम दोनो चुप रह के
ये मौन की भाषा कितनी बोली थी
इन निमलित विशाल नैनों ने तब
दो हृदय मानों मूक भाषा में
सब कह कह कर शांत हो रहे हों
आज भी वह चित्र कहीं रखा है मैंने
सहेजकर अपने दिल की संदूक में
शायद मैं कह पाऊँ वह शब्दों से
एक दिन जो कहा था नैनों ने
हे !मेरे प्रिय, मनभावन तुमसे 

Thursday, July 5, 2012

बदलाव

मैं चाहती हूँ कि अब 
महिलाओं को पीटने की
परिपाटी बंद होनी चाहिए 
महिलाएं केवल जिस्म नहीं हैं 
उनमें भी जीवन है एक 
महिलाएं जी सकें अपना जीवन 
इसलिए व्यवस्था बदलनी होगी 
व्यवस्था महिलाएं ही बदलेंगी 
ये काम वे स्वयं ही करेंगी
कोई पुरुष नहीं साथ देगा 
कोई मुहूर्त नहीं होता कभी 
अच्छे काम की शुरुआत का 
इसलिए नारियल फोड़ो अभी 
और कर दो शंखनाद तुम 
आज से अपने बदलाव का

औरतें

आफिस में अक्सर बतियाती हैं 
औरतें अपने घर के बारे में 
साथ ही लती हैं अपना घर 
वे भरकर अपने आँचल में 
छोड़ आती हैं घर में पीछे 
दूध पीते बच्चे आया के पास 
सास ससुर बंद घरों में 
किसी चौकीदार की तरह 
रोज मरती हैं दफ्तरों में 
खटती हैं अपने घरों में 
दबत्ती हैं मेट्रो और बसों में 
पहुँचती हैं दबी कुचली सी
फिर करती हैं चौका बासन
हो चूका है जीना हराम
अब नहीं है इन्हें आराम 
ऐसे ही जीती हैं औरतें 

Monday, July 2, 2012

आशनाई किसी की जहाँ में सभी पूरी नहीं होती!!

आशनाई किसी की जहाँ में सभी पूरी नहीं होती!!
मुहब्बत है पेड़ की मानिंद जिसकी जड़ नहीं होती!!

मुहब्बत मक़बूल होती है जहाँ में गर हो जाए उससे!!
मुहब्बत में मैं मैं नहीं होती तुम तुम नहीं होती!!

गर दीदार ना हो दिलबर का मुहब्बत बढ़ती जाती है!!
ये वो शमा है लौ जिसकी वक़्त के साथ कम नहीं होती!!

खुदा बंदे में खुद बैठा है बंदे की इबादत से रश्क है उसको!!
गर इश्क़ होता तो दुनिया में जुदा कोई शक्ल नहीं होती!!

कभी ऐलान होता नही मुहब्बत का चढ़कर मीनारों से!!
'ज्योति'ये वो दौलत है जो बढ़कर कभी कम नहीं होती!!