Wednesday, May 30, 2012

चलता है युद्ध हर औरत के लिए

सुबह चार बजे उठना
खाना, कपडे, बच्चे, टिफिन 
बस्ता, होमवर्क ,जूते, बस 
सुबह से चलता है युद्ध
हर औरत के लिए 
बस पकड़ने के लिए 
भागती हुई औरत का 
दर्द कौन जानता है ?
स्टैंड से पहले ही हाथ देती है 
रुकवाने के लिए बस को 
मुस्कान बिखेर होती है खड़ी
जिस्मों से लदी बस में
जहाँ बदहवास औरत पर
तनी हैं बन्दूक सी आँखें
जो तन ही नहीं, मन तक
बेधती जाती हैं अन्दर तक
अब इसी तरह आदि हो गयी है
औरत जान गयी है अब ये
घर की नींव टिकी है उस पर
इसलिए जीती है वह अब
भूलकर , खूबसूरती और श्रृंगार
ताकि मजबूत रहे चारदीवारी
उसके अपने घर मंदिर की 

मेरे दोस्त बनके रहना कभी दूर ना होना!!

तुम से हो गया मुझे प्यार, कह नहीं सकती!!
पागल दिल है मेरा ,अब चुप रह नहीं सकती!!

साँसों से सज गया दिल का कोना कोना!!
यही इलतज़ा है मेरी,अब मेरे ही तुम रहना!!

मुझे प्यार से देखो,मेरे मन को छुओ ना!!
मैं हूँ प्यासी नदी, सागर तुम हो मेरे ना!!

दिल की ज़मीं पे तुम,आशाओं के मेरे मोती!!
मेरी नज़रों से दूर तुम हम दम नहीं होना!!

मेरी ज़मीं तुम ही , मेरा आकाश तुम हो!!
जिंदगी से कभी दूर मेरे यार ना तुम होना!!

तेरी याद से खाली मन की बगिया मेरी!!
मेरे दोस्त बनके रहना कभी दूर ना होना!! 

Tuesday, May 29, 2012

ਕਿਵੇਂ ਕਰਾ ਤੇਰਾ ਇਤਬਾਰ!!

ਹੁਣ ਇਹ ਗਲਾਂ ਨਹੀਂ ਭਾਓਂਦੀਆਂ ਮੈਨੂੰ!!
ਜਾ ਝੂਠਿਆ ਕਿਵੇਂ ਕਰਾ ਤੇਰਾ ਇਤਬਾਰ!!

ਅੱਜ ਵੀ ਵੱਸਦੀ ਤੇਰੇ ਦਿੱਲ ਵਿੱਚ ਉਹੋ!!
ਤੁੰ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ ਦਿੱਲੋਂ ਪਿਆਰ!!

ਕਦੇ ਕੀਤੇ ਸੀ ਸਾਡੇ ਨਾਲ ਜੋ ਵਾਦੇ!!
ਅੱਜ ਵੀ ਅਧੂਰੇ ਨੇ ਉਹੋ ਕੌਲ ਕਰਾਰ!!

ਰੋਂਦੀ ਰਹਿੰਦੀਨਾਂ ਸਾਰਾ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਰਾਤ!!
ਹੁੰਦਾ ਕਿਸਮਤ ਵਿੱਚ ਜੇ ਤੇਰਾ ਪਿਆਰ!!

ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਤੂੰ ਕਹਿਕੇ ਵੇਖਦਾ ਮੈਨੂੰ!!
ਦਿੱਲ ਕੀ ਚੀਜ਼ ਜਾਂ ਦਿੰਦੀ ਤੇਰੇ ਤੌਂ ਵਾਰ!!

ਮੇਰਾ ਦਿੱਲ ਹੈ ਤੇਰੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ਦਾ ਗੁਲਾਮ!!
ਤੇਰੇ ਬਿਨਾ ਹੋ ਗਈ ਜਿੰਦਗੀ ਬੇਕਾਰ!!

ਦਿੱਲ ਨੂੰ ਬੜਾ ਔਖਾ ਸਮਝਾਇਆ!

ਦਿੱਲ ਨੂੰ ਬੜਾ ਔਖਾ ਸਮਝਾਇਆ!!
ਬੇਵਫਾ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਸੀ ਉਹੋ ਹੋਇਆ!!
ਪਿਆਰ ਤੈਨੂੰ ਕਰਨਾ ਨਹੀਂ ਆਇਆ!!

ਰੁੱਲਦੀ ਰਹੀ ਪਿਆਰ ਸੱਚੇ ਲਈ ਤੂੰ!!
ਕਦਰ ਨਾ ਕੀਤੀ ਉਸ ਦੋਸਤ ਦੀ ਤੂੰ!!
ਉਸ ਸੱਚੇ ਪਿਆਰ ਦੀ ਹੋਈ ਨਾਂ ਤੂੰ!!

ਹੰਝੂ ਆਏ ਵਿੱਚ ਅੱਖੀਆਂ ਦਿਨ ਰਾਤ!!
ਜਦ ਪੁੱਛੀ ਨਹੀਂ ਤੇਰੀ ਕਿਸਨੇ ਬਾਤ!!
ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ਓਹੁ ਵਿੱਚ ਤੇਰੇ ਜ਼ਜ਼ਬਾਤ!!

ਛੱਡਣਾ ਉਹਨੂੰ ਤੇਰੇ ਲਈ ਨਹੀਂ ਸੀ ਔਖਾ!!
ਪਿਆਰ ਨਿਭਾਊਣਾ ਤੇਰੇ ਲਈ ਸੀ ਔਖਾ!!
ਦਿੱਲ ਵਿੱਚ ਉਹਦੇ ਤੇਰਾ ਰਹਿਣਾ ਸੀ ਸੌਖਾ!!

ਤੋੜਿਆ ਤੂੰ ਤਾਜ਼ ਮਹਿਲ ਨੂੰਹੱਥਾਂ ਨਾਲ!!
ਫਿਰਦੀ ਹੈਂ ਕਿਊਂ ਹੁਣ ਦਿਨ ਰਾਤ ਬੇਹਾਲ!!
ਠੁਕਰਾ ਦਿੱਤਾ ਤੂੰ ਹੀ ਉਸ ਨੂੰ ਹਰ ਹਾਲ!! 

छोड़ जाने कि बाद !

किसी के इतना करीब मत जाओ
कि उसको दुख हो
आपका उसको छोड़ जाने कि बाद!!

किसी को इतना करीब मत लाओ
कि आप को दुख हो
उसका आपको छोड़ जाने कि बाद !!

Tuesday, May 22, 2012

जिन्दगी के दर्द भरे पन्ने

जिन्दगी के दर्द भरे पन्ने
.............................
वह सिसकती रही घुटती रही 
उम्रभर घरों की ऊँची दीवारों में 
कतर दिए गए थे उसके पर 
कोशिश की उड़ने की कई बार
उसने ऊँचे खुले आकाश में
वह तडपती रही चिलाती रही
बीच सड़क, कोई नहीं आया
समाज का मसीहा उसे बचाने
आखिर उसने दम तोड़ ही दिया
कुछ तमाशबीन लोग आये
उसकी लाश को उठाने, ताकि
आने न लगे बदबू उसकी लाश से

अब वह रूह बन चिल्लाती है
उसकी अस्मत को तार तार किया
उन वहशी दरिंदों ने अपने घर के
उसकी छोटी छोटी बच्चिओं के
जिस्म से खेले खुलकर वे भोगी
जिन्दगी आशाओं की जगह
बन गयी चाहतों की कब्र एक

विरोध किया था उसने बहुत
भेजे जाने का ढाबे पर गोलू को
मिटा दिया गया मासूम बचपन
दिन रात काम करते करते
पड़ गए उसके हाथों में छाले
कोमल हथेलियों में जीवन रेखा
भर गयी काली काली रख से

बड़ी बेटी को लगाया था काम पर
मरती रही वह उन वेशाल्यों में
खाए धोखे उसने सगे बाप से
झोंक दिया गया मासूम कली का जीवन
शरीर की उस दहकती भठ्ठी में
अब रोज़ सजाई जाती हैं महफ़िलें
बाजारों में मासूम शरीरों की

समाज खामोश है ,कान जो बंद हैं
अब ये जिन्दगी खामोश है, मौत जैसी
औरत क्या करे, सोचती है हर मोड़ पर
कब तक तडपे वह भूख से लाचारी से
कब तक पिए वह जीवन का दिया जहर
शिव की तरह कब तक रहे शांत वह
कब तक बांटे अमृत दूसरों के लिए वह
अपने ही स्तनों से , नोचे जाने के लिए

अब औरत ने ठान लिया है वह जिस्म की
दूकान लगाएगी, आज ये ही चलती है
इस से ही घर की, दुनिया की रोज़ी है
अब ये जहर औरत मुफ्त में नहीं पीयेगी
ये जहर बंटेगी, उसकी कीमत भी लेगी
बहुत जहर है औरत के जिस्म में आज
ज़हर खुद नहीं पीयेगी, अमृत पीयेगी वह
ज़हर इन दरिंदों हैवानो को पिलाएगी वह
आज ऐलान करती है औरत समाज में
सब ठेकेदारों को जाग जाओ ! वर्ना ये सपना
सच होगा औरत का , कोख भरी है उसकी
और वह इस को जनम देगी ही, तुम जानते हो

Monday, May 21, 2012

माँ बेटी का रिश्ता

जब एक औरत माँ बनती है तब वह संपूर्ण हो जाती है. माँ और बच्चे का रिश्ता दुनियाँ के सभी रिश्तों से विशिष्ट और पवित्र रिश्ता है. एक माँ और पुत्री का रिश्ता तो बहुत ही खूबसूरत और खुदा सा पवित्र होता है जिस दिन एक नन्ही परी उसकी कोख से जन्म लेती है तो एक औरत खुद पे गर्व महसूस करती है क्योंकि एक बेटी के रूप में उसने फिर से खुद जन्म लिया, ऐसा उसे आभास होता है और एक बेटी के रूप में वो अपना बचपन फिर से जीती है. संतान असीम संभावनाओं का मानचित्र खींचती है जीवन में. अनेक सपनों को जन्म देती है...जो बहुत ही सुंदर और मन में स्फूर्ति भरने वाले होते हैं. 

जब वो नन्ही परी चलना शुरू करती है, तुतलाके बोलती है, उसकी मासूम सी मुस्कुराहट और शरारते, इन सब में वो अपना बचपन ढूँढती है. माँ और बेटी का रिश्ता दुनियाँ के सभी रिश्तों से अनमोल रिश्ता है जैसे आत्मा और परमात्मा का,दिल और धड़कन का बेटी माँ के दिल का टुकड़ा होती है. बरती रूप में माँ खुद एक नया बचपन जीती है .

कितने मधुर अहसास छिपे होते है इस प्यारे रिश्ते में . थोड़ी सी भी तकलीफ़ माँ को हो तो बेटी दुखी होगी यदि छोटी से खरोंच भी बेटी को आ जाए तो माँ तडफ उठती हैं. माँ और बेटी एक अच्छी दोस्त भी होती हैं दोनो अपनी हर छोटी से छोटी बात एक दूसरे से साँझा करती हैं.


माँ ही बेटी की पहली शिक्षक होती है .बेटी को अच्छे संसकार माँ से ही मिलते हैं. माँ बेटी को जिंदगी में आने वाली सभी मुश्किलों से निपटना भी सीखाती है. आज की बेटी पढ़ी लिखी कमाती है, माँ के हर दुख सुख में काम आती है बेटों से बढ़ के आज वो उसके बुढ़ापे की लाठी बनती है. बहुत बार देखा है की बेटे बूढ़े माँ बाप तक नहीं पहुँच पाते जब जरुरत की घडी होती है किन्तु बेटियाँ हर हालत में माँ बाप तक पहुँचती है...ये रिश्ता वे अपनी खुशियों में सबसे ऊपर शुमार करती हैं. वास्तविकता तो ये है की बेटियाँ माँ और बाप के लिए खुद माँ ही बन जाती हैं.


माँ बेटी का अजब है नाता 

जिसमें केवल प्रेम का खाता 

सब जग संबंधों से ऊँचा है 

ये माँ बेटी का रिश्ता नाता 

जिसको माँ ने गोद खिलाया 

उसने माँ का क़र्ज़ चुकाया 

अमर प्रेम का रिश्ता है ये 

ये माँ बेटी का रिश्ता नाता

Thursday, May 10, 2012

माँ बेटी का रिश्ता

माँ बेटी का अजब है नाता 

जिसमें केवल प्रेम का खाता 

सब जग संबंधों से ऊँचा है 

ये माँ बेटी का रिश्ता नाता 

जिसको माँ ने गोद खिलाया 

उसने माँ का क़र्ज़ चुकाया 

अमर प्रेम का रिश्ता है ये 

ये माँ बेटी का रिश्ता नाता

Thursday, May 3, 2012

वेश्या


मैं एक वेश्या हूँ समाज़ की नज़र में
क्योंकि मैं अपना ही जिश्म बेचती हूँ
ये मेरा जिश्म ही है मेरी दुकान एक
समाज के भूखे भेड़िये दरिन्दे हैं ग्राहक
रोज़ बंटती हूँ में उनमें भूख की तरह
खेलते हैं शरीर की भूख मिटाने वे रोज़
और चले जाते हैं घर, काट कर बनवास
तन जंगल में अपनी अपूर्ण हवस का
मगर वे फिर भी सभ्य है, पुरुष हैं
उनसे ही चलता है घर और समाज
सम्मान भी वही पाते हैं , हर और से
मैं रह जाती हूँ बनकर सिर्फ एक गाली
जो केवल रात में भाति है हर सभ्य को
हर कोई मचलता है अपनाने को मुझे
पर बस दुल्हन एक रात की ही तरह
मैं भावना पोंछने का तौलिया मात्र हूँ
कोई तौलिया लपेटकर बाहर नहीं जाता
वह तो नंगापन ढँकता है हर एक का
और मैं ऐसा तौलिया जिसके सामने सब
आते ही हैं केवल नंगे होने के लिए
मैं प्यास बुझाती हूँ अतृप्त पुरुषों की
वे मेरे रूप और जिश्म से भरते हैं
अपनी मन वासना के लोटे पर लोटे
पर ये कुआं हमेशा उपेक्षित ही रहा है
कोई नहीं सुनता अंतरात्मा की आवाज़
कोई नहीं समझता मुझे यहाँ पर इंसान
रोज़ लोटता है सम्मान पैरों में मेरे मगर
मुझे कोई सम्मान नहीं देता अँधा समाज
हाँ, विशेषण जरुर दिए जाते हैं मेरे ही
कुलटा, रंडी ,करमजली कहकर अक्सर
जब समाज बनता है सब के लिए बाड़
कहाँ खो जाते है तुम्हारे वे सरे संस्कार?
जब तुम आते हो रोज चढ़कर मेरे द्वार
मैं तो करती हूँ सदा ही तुम्हारा सत्कार
और तुम देते हो मुझे दुत्कार ही दुत्कार
हे! सामाजिक ढोंग रचने वाले पुरुष
तुम्हें सिफ धिक्कार है..नारी का धिक्कार
तुम केवल वासना पूज सकते हो मन में
हटा डालो अपनी सारी देवियाँ अपने मंदिर की
तुम नारी की पूजा न सके सभ्य पुरुष
तुम से देवी की पूजा भी न हो सकेगी jyoti dang