Thursday, September 30, 2010

तेरे सपनों मे खो जाऊँ

दिल करता है सो जाऊँ
तेरे सपनों मे खो जाऊ
आज तू मुझे अपना ले
मैं दुल्हन सी हो जाऊँ
आगोश मे भर ले मुझे
तुम मेरे हो जाओ
मैं तेरी हो जाऊँ
चुन लो तुम मुझे
बिखर गई हूँ मैं मोतियों जैसे
आज तुम भी बिखर जाओ
मेरी जुलफो मे समा जाओ
मेरे माथे की बिंदिया बन जाओ
माँग मे सिंधूर की लालिमा बन जाओ
होठों का हर रंग चुरा लो तुम
मेरी जिंदगी मे शामिल हो जाओ तुम
इस सपने को हक़ीकत बना दो तुम
तुम मेरे हमसफ़रबन जाओ
मैं तेरी जीवन संगनी बन जाऊँ

Wednesday, September 29, 2010

लिखा क्या उसने , माथे पे इन्सान के!!

खुदा उतर आया इस ,
धरती पर उस आसमान से!!
लिखा  क्या  उसने ,
माथे पे  इन्सान के!!
हिंदू, मुसलमान ये,
सिख, ईसाई है ये ,
हैं सब उस भगवान के!!
घरों की दीवारों  पे,
लिखो राम या रहीम,
वहेगुरू या यीशू मसीह!!
हैं तो सब नाम,
उस  भगवान  के!!
मंदिर  रहे  या,
 मस्जिद    बने!!
गुरुद्वारा हो कहीं,
या गिरजा हो कहीं!!
हैं यह सारे स्थल उस,
एक शक्ति के नाम के!!

गरीबी

घर से बाहर निकली!
एक छोटी सी लड़की मिली!
तन पे कपड़ों के नाम पे चिथड़े थे!
पाओं में टूटी सी चप्पल थी!
चेहरे पे मासूमियत थी!
हाथ माँगने के लिए उठे थे!
आँखों में एक आस थी!
आज भी कुछ मिलेगा!
जिंदगी का कुछ वक़त,
तो  अच्छा  गुजरेगा!
दिल से एक हुक उठी!
हे परमात्मा मैने तुम्हे,
एक चिट्ठी लिखी!
कैसी है तेरी खुदाई!
तुमने यह कैसी दुनिया बनाई!
कहीं खाने, पहनने, रहने के,
लाखों साधन पड़े हैं!
कहीं एक रोटी के टुकड़े के.
लिए माँगना पड़ता है!
तुमने यह दुनिया ही क्यूँ बनाई!
तुझे ज़रा सी दया भी ना आई!

Tuesday, September 28, 2010

कुछ स्कून तो, इस जिन्दगी को दिलादे

तू कितना चाहता है मुझे,
अब तू यह भी बता दे!!

मेरे दिल में खोए से,
अल्फ़ाज़ फिर से जगा दे!!

खवाबों की दुनिया को ,
सज़ाया था मैने तू,
उसे हक़ीकत बना दे!!

जिन अरमानों को मैंने,
खाक में मिलाया था,
उनको नई जिन्दगी देदे!!

रहनुमा बनके जिन्दगी का,
तू प्यार का रास्ता दिखा दे!!

हालत-ए-जफ़ाओं से थक चुकी हूं,
आके तू कुछ स्कून तो,
इस जिन्दगी को दिलादे

भूल गये हैं

दिल टूटा है किसी का
आँसू इन आँखों मे आना भूल गये हैं
साँसें तो हैं पर साँस लेना भूल गये हैं
जिंदा तो हैं पर जिंदगी जीना भूल गये हैं
प्यार तो है दिल मे पर प्यार करना भूल गये हैं
बातें तो बहुत हैं पर बातें करना भूल गये हैं
फीकी सी हँसी है इन होठों पे
पर मुस्कुराना भूल गये हैं
यादें किसी और की हैं
मुझे अपनी यादों का हिस्सा बनाना भूल गये हैं
उसके दिल के किसी कोने मे में हू
वो मेरे दिल मे आना भूल गये हैं
प्यार करना तो दूर
नाम भी भूल गये हैं
घाव तो बहुत दिए दुनिया ने
खुद ही मरहम लगाना भी भूल गये हैं

Saturday, September 25, 2010

यह कच्चे धागे से जुड़े रिश्ते

राखी का दिन आया
खुशियाँ ढेर सारी लाया
कुछ के लिए गम भी लाया!!
आज कुछ आँखें हैं नम
दिल में छिपाए ढेर सारे गम!!
कहीं बहने रोती राखी बाँधने को
कहीं भाई तरसते राखी बंधवाने को!!
आज यह रिश्ते भूल गये
राखी दिवस को
उस के अपनत्व को!!
राखी दिवस को तोल दिया पैसों से
राखी के धागे को रोंध दिया,
अपने अहंकार के पायों से!!
यह मतलब की दुनिया
यह मतलब के रिश्ते
यह कच्चे धागे से जुड़े रिश्ते!!
क्यूँ टूट जाते हैं कुछ बातों से,
क्यूँ बिखर जाते हैं कुछ पल में!!

हसरत

कितनी हसरत थी
प्यार में खो जाने की

कितनी हसरत थी
प्यार में डूब जाने की

कितनी हसरत थी
प्यार को अपना बनाने की

कितनी हसरत थी
प्यार को पवित्र बनाने की

कितनी हसरत थी
प्यार को खुदा बनाने की

Friday, September 24, 2010

बीते हुए पल

दिल के आयने मे जब देखा
उनका ही चेहरा नज़र आया
सर-ए-रह जब हम चले
उनका ही साया साथ आया
जब सोचा बीते पलों के बारे में
तो उनका ही ख्याल आया
जिंदगी यूँ ही बीत गई
पर उनका प्यार हमें न मिल पाया

अपुन के बाप का क्या जाता

अनाज खुले में पड़ा,
सड़ रहा,सड़ने दो,
अपुन के बाप का क्या जाता!!
इससे लाखों ग़रीबों का,
पेट भर सकता,
भूखे मरते हैं,मरने दो,
अपुन के बाप का क्या जाता!!
सड़क पे दुर्घटना हुई,
कोई तडप रहा,तड़पने दो,
अपुन के बाप का क्या जाता!!
वो किसी का बेटा,भाई,बाप है,
होगा, मरता है मरने दो,
अपुन के बाप का क्या जाता!!
लड़के ने लड़की को छेड़ा,
छेड़ रहा, छेड़ने दो,
अपुन के बाप का क्या जाता!!
वो किसी की बहन, बेटी, माँ है,
होगी किसी की,अपुन को क्या,
अपुन के बाप का किया जाता!!
कितने दृश्य दिखाई देते रोज़,
मतलब की दुनिया, मतलब के लोग,
गधे को बाप बनाते यह लोग,
जो होता होने दो, यही कहते लोग,
अपुन के बाप का किया जाता!!

बीते पलों की वो यादें

बीते पलों की वो यादें!!
याद हैं आज भी वो सारी बातें!!
वो पुराना खंडहर सा मकान!!
यहाँ छुप-छुप मिला करते!!
वो पुराना बरगद का पेड़!!
जिसकी छाया में बैठा करते!!
तुम्हारे हाथ में होता था मेरा हाथ!!
सांझा करते थे,अपने सारे जजबात!!
वो नादिया  का किनारा!!
पानी में एक दूसरे को निहारा करते!!
वो ढलता दिन, छिपता सूरज!!
जिस समय हम बिछड़ा करते!!
हम दोनो हो जाते थे उदास!!
अगले दिन होती थी मिलने की आस!!
ना रहे वो दिन!!
ना रही बातें!!
बीते पलों की वो यादें!!
याद हैं आज भी वो सारी बातें!!

Thursday, September 23, 2010

कब जागेगी हमारी यह सरकार

मंहगाई इतनी क्यूँ बढ़ रही है
क्या अनाज की पैदावार घट रही है
या कुदरती आफ़तों से
फसलें बर्बाद हो रही है
या जंगली जानवरों से
नुकसान हो रहा है
किसी ने सोचा कभी
क्या है हमारे देश में कमी
क्यूँ हो रहा है ऐसा
सब को क्यूँ नहीं मिलता
पेट भर खाने को
इंसान क्यूँ तरसता है
अन्न के एक एक दाने को
भारत तो सोने की
चिड़िया कहलाता था
अपनो का किया
दूसरों का भी पेट भरता था
क्या हुआ आज इस देश को
सरकार क्यूँ रोना रोती है
गेहूँ,धान की कमी बताती है
अरे कितना गेहूँ और धान
यू खुले में पड़ा सड़ रहा है
भंडारण के गैर वैज्ञानिक तरीकों से
गोदामों मे जगह की कमी से
यह सरकार क्यूँ कुंभकर्णी नींद सोई रहती
बस अपने ही बहानो में खोई रहती
कब जागेगी हमारी यह सरकार
कब तक होगा हमारा अनाज यूं बर्बाद

तुम मेरे क्या हो

आसमान में तारे अनेक क्यूँ हैं!!
सूरज और चाँद ही एक क्यूँ हैं!!

तुम मेरे दिल में आज भी हो,
कोई और क्यूँ नहीं है!!

वो ऐसे!!
तुम मेरी यादों में हो!!
मेरे दिल में बसे हो!!
मेरी आत्मा में मिले हो!!
मेरे रोम रोम में हो!!

जैसे!!
परमात्मा इस दुनिया के,
कण- कण में है!!
मेरी नसों में,खून
बनके बह रहे हो!!
मेरी दिल की धड़कन हो!!

तेरे यह दुख के आँसू,

तेरे यह दुख के आँसू,
इन्हें हाथों में संभाला है मैने!
ये बेशक़ीमती मोती हैं,
इन मोतियों को यूँ ना लूटाया करो!!

सुख आज इस जिन्दगी को छोड़ चुके,
दुखों का समुन्दर है यह जिन्दगी तेरी!!
तेरे हर दुख को अपना माना है मैने,
इनको तुम आँखों से यूँ ना बहाया करो!!

कभी मेरे प्यार को अपना बनके देखो,
फिर तेरे मेरे दुख- सुखएक होंगे!!
तेरे इन आँसू को सराहा है मैने,
इनको,दूसरों के लिए यूँ ना जाया करो

कुछ मुहावरे ऐसे भी

हे सखी,
चल नाचते हैं!!
गाते हैं,
गुनगुनाते हैं!!
कैसे गाऊँ,
कैसे गुनगुनाऊं!!
गला मेरा खराब,
पांवों में है दर्द!!
मैं तो नाचना,
जानती नहीं!!
गाना गुनगुना,
जानती नहीं!!
इसलिए कहते हैं,
नाच ना जाने,
आँगन टेडा!!

चल बेटा उठ जा,
ताज़ा दम हो जा,
फिर स्कूल जा!!
माँ मुझे स्कूल,
नहीं जाना!!
मैं हूँ बहुत बीमार,
यह तेरा रोज़,
का बहाना!!
तुझे घर पे,
करना है आराम!!
इसलिए कहते हैं,
आलसी एक,
बहाने अनेक!!

कितने मीठे मीठे आम,
लगे हैं पेड़ पे!!
चल दोस्त इसे तोड़े,
तू चढ़ मेरी पीठ पे!!
रहने दे यार,
तू क्यूँ इन्हें,
करता है खराब!!
यह हैं कच्चे आम,
इन्हें खा कर,
नहीं करना गला खराब!!
इसलिए कहते हैं,
हाथ ना पाहूंचे,
थू कोड़ी!!

Wednesday, September 22, 2010

आधुनिकता

मानवी घर के काम निपटा के सुस्ताने के लिए कमरे में गई. अभी लेटी ही थी कि फोन की घंटी घनघना उठी. उसने फोन उठाके "हेलो" बोली तो उधर से आवाज़ आई"आप मानवी बोल रही हैं" तो मानवी बोली"जी मैं मानवी ही ही हूँ, आप कोन"तो उधर से आवाज़ आई"अरे आप ने खुद ही मुझे फोन किया और खुद ही भूल गई"मानवी थोड़ा गुस्से में बोली" मैने आप को कब फोन किया"तो दूसरी तरफ़ से वो व्यक्ति बोला"अरे कल शाम को तो फोन करके मुझे आज आपने घर आने को कहा था"मानवी थॅकी हुई थी वो उस अनजाने व्यक्ति की बात पे झला पड़ी और बोली"आप है कोन और कों सा नंबर डायल किया"तो दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई"कि................इसी नंबर से मानवी ही बोल रही हैं" तो मानवी का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था. वो गुस्से से भरी बोली"बेवकूफ़ इतना नहीं मालूम, जब फोन करते है,पहले नंबर पूछते हैन.येह ग़लत नंबर है" इतना कहते ही उसने फोन बंद कर दिया और वो सो गई. सोने के बाद जब उठी तो उसने दीवार की तरफ़ देखा, घड़ी १२ बजा रही थी. वो फटाफट उठी और दोपहर का खाना बनाने में जुट गई. खाना बनाते बनाते १ बज गया. सोचती है बच्चों को स्कूल आने में अभी १ घंटे का का समय है तो टी. वी. देख लूँ .वो टी. वी. देखने बैठ जाती है. तभी फिर फोन बजता है वो फटाफट उठती है उधर से फिर उसी व्यक्ति की आवाज़ आती है"हेलोमानवी" वो झुंझलके बोलती है"अब फोन क्यूँ किया"वो बोलता है"आप से बात करने का मन था, इसलिए" मानवी बोलती है"मैं अनजाने व्यक्ति से बात नहीं करती" इतना कहके फोन काट देती है

11:25 am (34 minutes ago)
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invisible jyoti

अगले दिन भी उसके साथ ऐसे ही होता है. उस व्यक्ति के कितनी बार फोन
आते है. वो उठाके काट देती है. ऐसे ३ ४ दिनो से लगातार हो रहा था तो वो बहुत परेशान हो जाती है और आज फिर उस व्यक्ति का फोन आता है. तो वो उठती है और बड़े गुस्से में बोलती है" क्यूँ परेशान करते हो बार बार फोन करके,एक बार बोला ना मुझे बात नहीं करनी किसी अनजाने व्यक्ति से और आगे से फोन मत करना, समझे" वो फोन काटने लगती है तो उधर से आवाज़ आती है"फोन मत काटना, यदि चाहती हो कि मैं तुम्हे परेशान ना करूँ तो आज तुम्हे मेरी पूरी बात सुननी होगी, नहीं तो ऐसे ही फोन करता रहूँगा" तो मानवी गुस्से में बोलती है" बोलो क्या कहना है,यह पहली और आखरी बार बात होगी, यदि फिर तंग किया तो सीदे पुलिस में शिकायत करूँगी"तो वो बोलता है"ऐसी नौबत नहीं आएगी,मैं सोमेश हूँ,एक कंपनी में इंजिनियर हूँ. माँ बाप की एकलोती संतान"तो इतने में मानवी बोलती है" तो मैं किया करूँ, मुझे क्यूँ बता रहे हो" तो वो बोला जानती हो मैं कों हूँ" तो मानवी बोली" मुझे नहीं जानना, तुम कों हो और फोन बंद करो, मेरा दिमाग़ मत खाओ" तो वो बोला" मैं जिगोलो हूँ" मानवी बोली"क्या? वो किया होता है" तो सोमेश बोला"जैसे कॉल गर्ल्स' होती हैं वैसे ही कॉल बॉय होते हैं, उसी को जिगोलो कहते हैं"तो मानवी झलाके फोन काट देती है. और मूँह में बड़बड़ाती है'बेवकूफ़, पता नहीं कोन सा गंदा दिन था, जो उस गंदे का मैने फोन उठा लिया'

11:26 am (33 minutes ago)
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invisible jyoti

इतने में ही उसका फिर फोन आ जाता है .उसको बहुत गुस्सा आता है और फोन उठाके बहुत बुरा भला कहती हैउसे. तो वो भी उधर से गुस्से में चिला के बोलता है"तुम मुझे क्यूँ कोस्ती हो, कोसो उन अमीर औरतों को,जो खु मुझे फोन करके बुलाती है,अपनी इच्छा पूर्ति के लिए इतना पैसा कमाती है, खानदानी होकर भी ऐसे काम करती हैं मैं गंदा हुआ या वो औरते. जिनके पास पैसा है,नाम है ,शोहरत है,अच्छा घर परिवार है, फिर भी पति की पीथके पीछे ऐसे घिनोने काम करती हैं,तुम मुझे सच्ची लगी इसलिए अपने दिल की बात तुम्हे बताना चाहता था, जो बता दी आज के बाद कभी तंग नहीं करूँगा. अलविदा , खुश रहो"इसके बाद फोन कट जाता है. मानवी सोचती है 'अरे ऐसे भी कभी होता है,बेवकूफ़ कोई पागल होगा' और अपने काम में व्यस्त हो जाती है.शाम कोपति घर आता है तो उनके चेहरे पे उदासी देखती है.तो अपनी सारी बात भूल जाती है.उन्को नाशता देके रात के खाने की तैयारी में जुट जाती है और रात को जब सोने कमरे में जाती है तो पति से पूछती है"किया हुआ कुछ दीनो से बहुत परेशन लग रहे हैं"तो उसका पति बोलता है"हाँ एक बात परेशान कर रही है,तुम्हे बताया था कि हमारे आफ़िस में एक नई बॉस'औरत आई है.वोह कुछ दिनों से परेशान कर रही है"तो मानवी बोलती है"क्यूँ किया बात हो गई "तो उसका पति बोलता है"कैसे बताऊं, बोलते भी शर्म आती है . वो मेरी तरक्की रोक रही है, बोलती है उसकी एक बात माननी होगी" तो मानवी पूछती है " किया बात है" तो उसका पति बोलता है"कि मुझे अपने साथ, कुछ समय बिताने के लिए बोली है" मानवी यह बात सुनके धक से रह जाती है. और उसे वो अनजाने व्यक्ति की बातें याद आ जाती है. जिसको उसने पागल, बेवकूफ़ समझा और उसकी बातों को झूठ. वो सोचती है यह औरतें भी कैसी हैं उजले कपड़े में ढके काले चेहरे.
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दो आँखें,

चाँदनी रात,
टिमटिमाते तारे,
दो आँखें,
मुझे ढूँढती,
हुई सी!!

वो भावनाएँ,
हमने साथ,
बनती थी,
उन्हें ढूँढती,
हुई सी!!

वो तमन्नाएँ,
जो रह गई,
थी अधूरी सी,
उन्हें ढूँढती,
हुई सी!!

वो पल,
जो हम ने
साथ बिताए,
उन्हें ढूँढती ,
हुई सी!!

उन आँखों को,
मैं ढूँढती,
हुई सी!!
कहाँ हैं,
इस दुनिया में,,
मैं ढूँढती ,
हुई सी!!

आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए

आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए
खुद को आँसुओं मे डुबाए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए
जिन्दगी में तो वो मुझे मिल ना पाए

कितनी शांति से मैं यहाँ सो रही थी
आज उनकी अखियाँ मेरी कब्र को क्यूँ धो रही थी
उनको पाने की चाहत में
जिन्दगी को सँवारने की चाहत में
मेरे सारे सपने कहीं खो गए
जब वो किसी और के हो गए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए

इतमीनान से ना जी सकी
सकूँ से ना मार सकी
इतनी शिद्त से मैने उन्हें चाहा था
फिर भी उन्होने मुझे क्यूँ ठुकराया था
जीते जी वो मेरे क्यूँ ना हो पाए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए


मुझे फिर से तंग करने
याँ मेरी खामोशी को तोड़ने
क्या मिलेगा उनको अब मुझसे
मेरी कुछ हड्डियाँ याँ मेरी राख
मरके जिसमे होगये थे मेरे सारे सपने खाक
वो क्यूँ किसी ओर के हो पाए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए

जीते जी मैं उनकी साजिशें ना समझ पाई
उन्हों ने की थी जो मेरे साथ बेवफ़ाई
उन्हों ने क्यूँ मेरे सारे सपनों को खाक में मिला दिया
इस जिन्दगी को राख बना दिया
जीते जी वो मुझे क्यूँ ना समझ पाए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए

मैं हूँ वोह अनचाही औलाद

मैं हूँ वोह अनचाही औलाद
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद,
जिसके लिए नहीं हैं इस दुनिया,
में कोई भी अच्छी सौगात!!
मया ने जानम दिया,
पिता ने कभी गोद में ना लिया!!
पली बड़ी अभावों में,
ना मेरे कोई अपने,
ना मेरे कोई सपने!!
ना मैं किसी के ख्वाबों में,
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद!!
बड़ी हुई तो मां बाप ने,
बेच दिया, अनजाने हाथों में!!
भेज दिया, दूर गाँव,दूर देश में!!
यहाँ कोई ना अपना,
रोज़ रात को लुटती रही,
नुचती रही,अनजाने हाथों में,
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद!!
जब इस मन ने विरोध किया,
घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया!!
भटकती रही उन अनजाने देश में,
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद!!
भूखी रही,जूठन मांजी,
लोगों की जूठन खाई!!
घर में जब की बात,
नहीं दिया किसी ने मेरा साथ!!
आज बस उस खुदा से,
एक ही है आस!!
जल्द से जल्द रुखसत हो जाऊं,
इस बेरहम दुनिया से,
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद!

देश हमारा भारत प्यारा

देश हमारा
भारत प्यारा

दुनिया मे निराली इसकी शान
प्रशंसा इसकी करती दुनिया
हम सब को है इस पे मान

इसमे है दरिया, झरनों की भरमार
अनाज का है यह भंडार

हिमालिया, हिम गिरि जैसे पर्बत इसमें
बहती गंगा, जमुना जैसी पवित्र नदियाँ इसमें

महात्मा गाँधी,भगत, सुभाष बोस जैसे
कितने सवतंत्रता सेनानी हुए
नेहरू, रानी झाँसी,महाराणा प्रताप जैसे

भान्त भान्त की बोली बोलते लोग यहाँ
भान्त भाँतका खाना खाते लोग यहाँ

अलग अलग संस्कृति की मिसाल है यह
अनेकता में एकता की मिसाल है यह

यह है हम लोगों की मुस्कान
यह है हमारी जान

दुनिया में निराली इसकी शान
देश हमारा
भारत प्यारा

माँ आज भी मेरे लिए

माँ का आँचल,
आज भी मेरे लिए!!
धरती का सवर्ग,
आज भी मेरे लिए!!
माँ की ममता,
आज भी मेरे लिए!!
मुश्किलों की धूप में,
छाया है,
आज भी मेरे लिए!!
माँ का हर बोल,
आज भी मेरे लिए!!
मीठा सा कोई गान,
आज भी मेरे लिए!!
माँ की सीख, 
आज भी मेरे लिए!!
पथ प्रदर्शक,
आज भी मेरे लिए!

क्यूँ उनको अकेला है छोड़ देते

: रात मैने माँ को फ़ोन किया!!
उन्होने खूब सा प्यार किया!!
सुखी रहो, जीते रहो!!
ढेर सा आशीर्वाद दिया!!
बातों ही बातों में बात चली!!
मैने पूछा माँ से!!
माँ कैसे रह लेती हैं अकेली !!
माँ बोली !!
खुदा को याद करती हूँ!!
इसी तरह टाइम पास करती हूँ!!
दिल बहुत हुआ उदास!!
क्यों कि नहीं था कोई उनके पास!!
जो माँ बाप उन्हें हैं पालते!!
बच्चे बड़े होके उन्हें है रुलाते!!
क्यूँ उनको अकेला है छोड़ देते!! 
क्यूँ बूढापे में माँ-बाप से मुंह मोड़ लेते हैं

एक अकेली औरत संघर्ष पथ पे

एक अकेली औरत
संघर्ष पथ पे
बहुत मुश्किलें हैं
पग पग पे
रास्ते कठिन
ना संगी साथी
ना सखा सहेली
कभी देनी पड़ती
बेटी, बहन होने की परीक्षा
कभी देनी पड़ती
बहू पत्नी होने की परीक्षा
हर युग में देनी पड़ी
क्यूँ तुझे औरत होने की परीक्षा
कभी दी सीता बनके अग्नि परीक्षा
कभी तुझे सती होना पड़ा
पति की चिता पे
कभी तुझे विधवा होने पर
हरिद्वार रहना पड़ा
कभी दासी प्रथा के नाम पर
मंदिरों में चढ़ा दी गई पुजारीओंको
कभी तुझे मारना पड़ा
"ओनर किल्लिंग" के नाम पे
फिर भी नहीं हारी
निरंतर चली जा रही
आगे ही आगे बढ़ती जा रही

भक्ति की व्यथा

भक्ति की व्यथा

सीमा आज बहुत गुस्से में थी कमरे के कितने ही चक्कर लगा चुकी थी. वो मुँह में बड़बड़ाती जा रही थी"आज फिर दफ़तर जाने में देर हो गई,बॉस से फिर डाँट सुननी पड़ेगी. भक्ति का यह रोज़ का शुग़ल हो गया है, रोज़ लेट हो जाती है" इतने में दरवाजे पे घंटी बजी. वो बाहर दरवाजा खोलने जाती है. सामने भक्ति खड़ी थी. सीमा दरवाजा खोलते ही उसे डाँट्ती है."तुम आज फिर देर से आई,आज फिर दफ़तर के लिए लेट हो जाऊंगी, कहाँ मर गई थी" भक्ति इतना सुनते ही रोने लगती है. सीमा उसकी तरफ़ देखती है और पूछती है"अरे ये तेरे चेहरे पे चोट की निशान कैसे?"तो भक्ति बोलती है" का करूँ बीबी जी?वो मुआ मेरा पति फिर रात को दारू पी कर घर आया. बच्चों को डांटा, और मुझे भी बहुत पीटा. इसलिए सुबह देर से उठीऔर देर हो गई"इतना कहके वो घर के काम में जुट जाती है. सीमा उसे समझा के दफ़तर काम पर चली जाती है.

कुछ दिन बाद भक्ति सीमा से बोलती है "मालकिन मुझे थोड़ा पैसा चाहिए"सीमा कहती है"अरे उस दिन तो तुमने पैसे लिए थे,अब क्या ज़रूरत आन पड़ी जो और पैसा चाहिए" भक्ति बोली" बीबी जी वो कल करवा चौथ का व्रत आ रहा है,तो साडी
और चूड़ियाँ ख़रीदनी हैं"सीमा बोलती है"भक्ति तू करवा चौथ का व्रत रखेगी"भक्ति बोली" अरे, का करूँ बीबी जी? वो पति है हमार, मारे पीटे. व्रत तो रखना ही पड़ेगा,पति देवता जो होत है."सीमा उसकी बात सुनके अवाक रह जाती है. यह कैसी औरत है? जो पति मारता , पीटता है उसको ही भगवान मानती है

Tuesday, September 21, 2010

अब कोन कहेगा, औरत तेरी यही कहानी,

औरत तेरी यही कहानी,
आँचल में दूध, आँखों में पानी!!
यह बात अब हुई पुरानी!!
औरत शक्ति का रूप!!
कभी दुर्गा का,
कभी झाँसी की रानी!!
कभी काली माँ का,
कभी कलपना चावला का!!
जिसकी जिन्दगी बन गई,
एक अमर कहानी!!
कभी चाँद पर पहुँची,
कभी घर बाहर को संभालती!!
कितनी औरतों ने देदी,
अपने देश के लिए कुर्बानी!!
अब औरत अबला नहीं,
सबला की है निशानी!!
अब कोन कहेगा,
औरत तेरी यही कहानी,
आँचल में दूध, आँखों में पानी!!

वो प

भक्ति की व्यथा

सीमा आज बहुत गुस्से में थी कमरे के कितने ही चक्कर लगा चुकी थी. वो मुँह में बड़बड़ाती जा रही थी"आज फिर दफ़तर जाने में देर हो गई,बॉस से फिर डाँट सुननी पड़ेगी. भक्ति का यह रोज़ का शुग़ल हो गया है, रोज़ लेट हो जाती है" इतने में दरवाजे पे घंटी बजी. वो बाहर दरवाजा खोलने जाती है. सामने भक्ति खड़ी थी. सीमा दरवाजा खोलते ही उसे डाँट्ती है."तुम आज फिर देर से आई,आज फिर दफ़तर के लिए लेट हो जाऊंगी, कहाँ मर गई थी" भक्ति इतना सुनते ही रोने लगती है. सीमा उसकी तरफ़ देखती है और पूछती है"अरे ये तेरे चेहरे पे चोट की निशान कैसे?"तो भक्ति बोलती है" का करूँ बीबी जी?वो मुआ मेरा पति फिर रात को दारू पी कर घर आया. बच्चों को डांटा, और मुझे भी बहुत पीटा. इसलिए सुबह देर से उठीऔर देर हो गई"इतना कहके वो घर के काम में जुट जाती है. सीमा उसे समझा के दफ़तर काम पर चली जाती है.

कुछ दिन बाद भक्ति सीमा से बोलती है "मालकिन मुझे थोड़ा पैसा चाहिए"सीमा कहती है"अरे उस दिन तो तुमने पैसे लिए थे,अब क्या ज़रूरत आन पड़ी जो और पैसा चाहिए" भक्ति बोली" बीबी जी वो कल करवा चौथ का व्रत आ रहा है,तो साडी
और चूड़ियाँ ख़रीदनी हैं"सीमा बोलती है"भक्ति तू करवा चौथ का व्रत रखेगी"भक्ति बोली" अरे, का करूँ बीबी जी? वो पति है हमार, मारे पीटे. व्रत तो रखना ही पड़ेगा,पति देवता जो होत है."सीमा उसकी बात सुनके अवाक रह जाती है. यह कैसी औरत है? जो पति मारता , पीटता है उसको ही भगवान मानती है

एक अंजन्मी बच्ची की व्यथा

एक अंजन्मी बच्ची की व्यथा

एक माँ जब अपना गर्भपात करवाने जाती है जब उसके घरवालों को मालूम होता है कि उसके पेट में लड़की है. तो उस समय उस अंजन्मी बच्ची और उसकी माँ के बीच जो बातचीत हुई उसको मैने इस रचना में प्रस्तुत किया है


जन्म से पहले मौत क्यूँ ?
माँ मुझे इस दुनिया में आने दे 
लड़की हूँ, या लड़का नहीं
जन्म तो लेने दे मुझे 
क्यूँ समझती हो मुझे
जिन्दगी का अंधेरा
मैं बनूंगी तेरी,
 प्यारी  बिटिया !!
जिन्दगी के हर पल,
हर लम्हें ,धूप छाँव में!!
दूँगी मैं तुम्हारा साथ !!
जब झटक देगा कोई तेरा हाथ,
तब मैं रहूंगी तेरे आस पास !!
मां ने सिसकते हुए कहा ,
बिटिया रानी ,
मुझे है तुमसे बहुत प्यार!!
कोन सुनेगा तेरी यह पुकार!!
मैं भी एक नारी हूँ ,
समाज ने दिए अनेकों दुःख !!
लड़की होना ही है समाज 
के लिए अभिशाप
तभी तो करा दिया 
जाता है  गर्भपात!!
गाज़र ,मूली की तरह 
आने से पहले ही काट देते 
हैं  यह लोग  !!
एक मौन चीक के साथ
तुझे देते हैं मौत !!
यह पढ़ा लिखा है  समाज
या है हैवानों का समाज !!
एक तरफ़ पूजता हैं देवी की तरह
दूसरी तरफ देते हैं तुझे मौत ...................

वो साया

मेरी यादों में आज भी एक धुँधला सा साया है!!
ना जाने क्यूँ उसको याद करके यह दिल भर आया है!!
जब वो साया यादों से निकल कर जिन्दगी में समाया है!!
फिर से यह जिगर तड़पने लगया है!!
आँखें रोने लगी हैं!!
जिन्दगी जहन्नुम बनने लगी है!!
उसकी बेवफ़ाई जो याद आने लगी है!!
रातों की फुरसतों में!!
जिन्दगी के अकेलेपन में!!
वो उसकी मीठी और झूठी बातें!!
वो दाग-ए- हिज़्ज़!!
वो उसकी साज़िशें!!
सब मिलके मेरे अकेलेपन को!!
और बढ़ने लगा है!!
उसकी बेवफ़ाई को भूलने लगी थी!!
दुनिया की वाफाओं में!!
जिन्दगी की दूसरी खुशियों में!
वो साया फिर से क्यूँ याद आने लगा है!!
जिन्दगी को फिर से जहन्नुम बनाने लगा   है!!
मेरी यादों में आज भी एक धुँधला सा साया है!!
ना जाने क्यूँ उसको याद करके यह दिल भर आया है!!
जब वो साया यादों से निकल कर जिन्दगी में समाया है!!
फिर से यह जिगर तड़पने लगया है!!
आँखें रोने लगी हैं!!
जिन्दगी जहन्नुम बनने लगी है!!
उसकी बेवफ़ाई जो याद आने लगी है!!
रातों की फुरसतों में!!
जिन्दगी के अकेलेपन में!!
वो उसकी मीठी और झूठी बातें!!
वो दाग-ए- हिज़्ज़!!
वो उसकी साज़िशें!!
सब मिलके मेरे अकेलेपन को!!
और बढ़ने लगा है!!
उसकी बेवफ़ाई को भूलने लगी थी!!
दुनिया की वाफाओं में!!
जिन्दगी की दूसरी खुशियों में!
वो साया फिर से क्यूँ याद आने लगा है!!
जिन्दगी को फिर से जहन्नुम बनाने लगा ह

ये वक़्त यहीं थम जाए!!

ये चन्दा यहीं रुक जाए!!
ये तारे यहीं ठहर जाए!!
ये वक़्त यहीं थम जाए!!

वो मेरे साथ!!
मैं उनके साथ!!

ये पल यूँ ही चलते जाए!!
ये रात यहीं रुक जाए!!

हम इतने करीब आ जाए!!
हवा भी ना हम से गुजर पाए!!

ये वक़्त यहीं थम जाए!!
ये रात यहीं थम जाए!!

सारी जिन्दगी यूँ ऐसे ही,
प्यार में गुजर जाए!!

ये वक़्त यहीं थम जाए!!
ये रात यहीं रुक जाए!!

सच्च यह घर मुस्कुराता है!!

सच्च यह घर मुस्कुराता है!!
स्वर्ग सा लगता है!!
दादा दादी का वो प्यार!!
माँ,बाबा की वो मीठी सी डाँट!!
बड़े भईया,भाभी का वो दुलार!!
छोटी बहनो की पायलों की वो झनकार!!
सच्च यह घर मुस्कुराता है!!
स्वर्ग सा लगता है!!
घर में सब का मिलजुल कर बैठना!!
दुख सुख बाँटना!!
ग़लती करने पर बड़ों का डांटना!!
फिर उनका प्यार से समझना!!
सच्च यह घर मुस्कुराता है!!
स्वर्ग सा लगता है!!
घर में छोटे बच्चों की वो किलकरियाँ!!
लगती ऐसे,जैसे हों फुलझड़िया!!
उनकी वो प्यारी सी तॉतली बातें!!
माँ के हाथ का खाना!!
मानो मिल गया कोई खजाना!
सच्च यह घर मुस्कुराता है!!
स्वर्ग सा लगता है!!

सच्च यह घर मुस्कुराता है!!

सच्च य

ह घर मुस्कुराता है!!

सच्च यह घर मुस्कुराता है!!
स्वर्ग सा लगता है!!
दादा दादी का वो प्यार!!
माँ,बाबा की वो मीठी सी डाँट!!
बड़े भईया,भाभी का वो दुलार!!
छोटी बहनो की पायलों की वो झनकार!!
सच्च यह घर मुस्कुराता है!!
स्वर्ग सा लगता है!!
घर में सब का मिलजुल कर बैठना!!
दुख सुख बाँटना!!
ग़लती करने पर बड़ों का डांटना!!
फिर उनका प्यार से समझना!!
सच्च यह घर मुस्कुराता है!!
स्वर्ग सा लगता है!!
घर में छोटे बच्चों की वो किलकरियाँ!!
लगती ऐसे,जैसे हों फुलझड़िया!!
उनकी वो प्यारी सी तॉतली बातें!!
माँ के हाथ का खाना!!
मानो मिल गया कोई खजाना!
सच्च यह घर मुस्कुराता है!!
स्वर्ग सा लगता है!!